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शब्दार्थ
+कर ए.. ऐसे ३० बोले सु• तुम दे० देवानुप्रिय म० मुझे का कालगत जा. जानकर मु० सुगंधित न.
माप से हा० स्नान कराना ५० पम मु. सुकुमार गं. गंध का काषाय से गा• गात्रों को लूथ पूंछकर स० अच्छा गो० गोशीर्ष गा० गात्रों को अ० लीपना म० महर्घ्य हव्हस लक्षणवाले ५० पट सा.121
साडी नि• डालना स० सर्वालंकार से वि० विभूषित क० करना पु० पुरुषमहस्र से व. वहनकराती सी. | पालखी में दुबैठाना मा०श्रावस्ती णनगरीमें सिं०शंगाटक जा यावत् प०पथ में म. बडे स० शब्दसे १०१ | उद्घोषणा करते ए०ऐसा व०बोलना ए ऐसा दे देवानप्रिय गोगोशाला मं० मंखलीपुत्र जि. जिन जि• जिन
ममं कालगयं जाणित्ता सुरभिणा गंधोदएणं ण्हाहेह सु. २ पम्हलसुकुमालए गंध कासाइए गायाइं लूहेह गा• २ सरसेणं गोसीसेणं गायाइं अणुलिंपह, स०२ महरिहं हंसलक्खणं पडसाडगं नियंसेह मह २, सव्वालंकार विभूसियं करेह, स० २ ता, पुरिससहस्सवाहिणीसीय दुरूहेह पु. २ त्ता, सावत्थीए णयरीए
सिंघाडग जाव पहेसु महयासहेणं उग्धोसेमाणा २ एवं वंदह एवं खलु देवाणुप्पिया भावार्थ सुगंधित पानी से मुझे स्नान कराना, पक्ष्म समान सुकोमल कषाय रंगबाले वस्त्र से गात्रों को स्वच्छ
करना, सरस गोशीर्ष चंदन से गात्रों को लेपन करना, बहुत मूल्यवाला व हंस समान श्वेत वख पाहेनाना, सर्वालंकार से विभूषित करना, सहस्र पुरुष वाहिणी शिचिका पर बैठाना, और श्रावस्ती नगरी के श्रृंमाटक
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालापसादगी -