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शब्दार्थ,
आजीविक उ. उपासक गो० गोशाला मं० मखली पुत्र को इ० यह ए० ऐमा वा प्रश्न वा. कहाया हुआ ह. हृष्ट तु० तुष्ट जा. यावत् हि. आनंदित मं० मंखली पुत्र को वं० वंदनाकर ण नमस्कार कर प० प्रश्न पु० पुछकर अ० अर्थ प० ग्रहण किये ५० ग्रहण कर उ० उठकर गो० गोशाला में मंखली पुत्र को वं वंदना ण. नमस्कार कर जा. यावत् प० पीछा गया ॥ १३२ ॥ त० तब से वह गो० गोशाला मं० मंखली पुत्र अ० स्वतः का म० मरण आ० जानकर आ० आजीविक थे० स्थविरों को स० बोला
गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं इमं एयारूवं वागरणं वागरिएसमाणे हट्ठ तुट्ट जाव हियए मंखलिपुत्तं वंदइ णमंसइ २ पसिणाई पुच्छइ, पुच्छइत्ता, अट्ठाइं परियादियइ, परियादियइत्ता उट्ठाए उढेइ, उट्ठइत्ता गोसालं मंखलिपुत्तं वंदइणमंसइ बं० २ त्ता जाव पडिगए ॥ १३३ ॥ तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते अप्पणो मरणं आभोएइ,
आभोएइत्ता आजीवियथेरे सदावेइ, सद्दावेइत्ता एवं वयासी तुब्भेणं देवाणुप्पिया! भावार्थ को मंखली पुत्र गोशालाने ऐसा उत्तर दिया जिस से बह हृष्ट तुष्ट यावत् आनंदित हुवा और वंदना नम
स्कार कर उस ने प्रश्न पूछे. प्रश्न पूछकर अर्थ ग्रहण किये फीर अपने स्थान से उठकर मंखलीपुत्र गोशाला को ae वंदना नमस्कार कर यावद पीछा गया ॥ १३२ ॥ अब मंखलीपुत्र गोशालाने अपना मरण जानकर
आजीविक स्थविर को पोलाये और ऐसे बोले कि अहो देवानुप्रिय ! जब मुझे मृत्यु प्राप्त हुवा जानो तव
- पंचमांग विवाह पस्णत्ति ( भगवती ) सूत्र8+
4808602 पत्ररहवा शतक
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