________________
शब्दार्थ *उपासक को एक ऐसा व० बोला अ० अयंपुल पु० धूनरात्रि में जा० याक्त् ज०जहां म. मेरी अं०पास से..
वहां आ० आया से अथण. शंकादशी अ. अयंपुल अ० अर्थ स. समर्थ ६० हा अ०है ॥ ११९ ॥ णो नहीं ए. यह अ. आम्रफल अं० गुठलीसे ॥१३०॥ किं. कैसा सं०संस्थान वाले ४० हल तं० तथा व. घशमुलं स० संस्थान वाले ह० हल प० प्ररूपे वी० वीणा वा० बजाइ ॥ १३१ ॥ त० तब से.
से णूणं अयंपुला! पुब्बरतावरत्तकाल समयंसि जाव जेणेव ममं अंतियं तेणेव हन्वमागए, सेणूणं अयंपुला ! अढे समढे ? हंता ! आत्थि।।१२९॥तं णो खलु एस अंबकूणए अं. वचोयएणं एस॥१३०॥किं संठिया हल्ला पण्णत्ता, तंजहा वंसीमूलसंठिया हल्ला पण्णत्ता।
वीणं वाएहिरिवीरगा वी० २ ॥ १३१ ॥ तएणं से अयंपुले आजीवियउवासए । में कुटुम्ब जागरणा जागते हुए यावत् मेरी समीप आया है. तो क्या यह बात सत्य है ? हां सत्य है. ॥ १२९ ॥ यह आम्रफल गुठलि सहित नहीं है, प्रत्येक को ग्रहण करने योग्य है. यह आमू नहीं है। परंतु आमू की छाल है. इस तीर्थंकर को निर्वाण अबसर में लेना कल्पता है ॥ १३० ॥ अब किस संस्थानवाला हल्ला कहा ? इस प्रश्न का उत्तर वांश के मूल के मंस्थानवाले हल्ला कहे हैं. फीर उन्माद के वश से 'वीणा बजाइ, अरे भाइ वीणा बजाइ' यों दो बार कहा. और अयंपुलने सुना. परंतु उन के मन को कारण उत्पन्न हुवा नहीं, क्यों कि जो मोक्ष जावे वे वैसा करे ॥ १३१ ॥ अब इस आजीविक उपासक
42 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
mmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
संकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *