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________________ +gin शब्दार्थ ॥ १२२ ॥ ज० यद्यपि अ० अयंपुल त० तेरे ध० धर्माचार्य ध० धर्मोपदेशक गो० गोशाला मं० मंखलीपुत्र | 4हा. हालाहला कुं० कुंभकारी की कुं० कुंभकार की आ० दुकान में अं० आम्रफल ह. हस्तगत जा०३० यावत् अं० अंजली क० करते वि० विचरते हैं त० उस में भी भ० भगवान् अ० आठ च० चरिम १०१.२ परूपते हैं तं० वैसे च० चरिम पा० पान जा. यावत् अं० अंत क० करेंगे ॥ १२३ ॥ जे. जो अ० अयंपुल त० तेग़ ध० धर्माचार्य ध० धर्मोपदेशक गो० गोशाला मं० मंखलीपुत्र सी० शीतल म० मृत्तिका जा. यावत् वि. विचरते हैं त• उस में भी भ० भगवंत इ० ये च० चार पा० पान च० चार अ० गोसाले मंखलिपुत्ते हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणांस अंबकूणगहृत्वगए जाव अंज लिं करेमाणे बिहरइ, तत्थविणं भगवं इमाइं अट्ठ चरिमाइं, पण्णवेइ तंजहा चरिमे ___पाणे जाव अंतं करेस्सइ ॥ १२३ ॥ जेविय अयंपुला ! तव धम्मायरिए धम्मो वएसए गोसाले मंखलिपुत्ते सीयालयाएणं माहिया जाव विहरंति, तत्थविणं भगवं इमाइं चत्तारि पाणगाई चत्तारि अपाणगाइं पण्णवेइ. सेकिंतं पाणए ? | धर्मोपदेशक मखलीपुत्र गोशाला हालाहला कुंभकारिणी की कुभकारशाला में विचरते हैं. वहां पर भी 14 वह भगवन्त इन आठ चरिम की प्ररूपणा करते हैं. जिन के नाम चरिम पानी यावत् अंत करेगा ॥१२३॥ और भी अहो अयंगुल ! ययाय तेरा।धर्माचार्य धर्मोपदेशक मंखलीपुत्र गोशाला शीतल यावत् मृत्तिका मीश्रित पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 48880 पन्नरहवा शतक 98248 भावाथे
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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