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शब्दार्थ + अ० अयंपुल आ० आजीविक ये० स्थावर अ० अयंपुल को ए० ऐसे व० बोले से० अथ मे० अहो अ० अयंपुल पु० पूर्व रात्रि में जा० यावत् कि० किस सं० संस्थानवाले ह० हल त० तब त० तुझे दो० दूसरी वक्त अ० यह ए० ऐसा तं० वैसे स० सत्र भा० कहना जा यावत् सा० श्रावस्ती ण० नगरी की म० मध्य बीच में जे० जहां हा० हालाहला कुं० कुंभकारी की कुं० कुंभकार शाला में जे० जहां इ० यहां ते. ( वहां ह० शीघ्र आ० आया से० अथ भे० अहो अ० अयंपुल अ० अर्थ स० योग्य ६० हां अ० अयंपुलाइ ! आजीवियथेरा अयंपुलं आजीविय उवासगं एवं वयासी सेणूणं भे अयंपुला ! पुव्वरत्तावर त्तकालसमयंसि जाव किं संठिया हला प० ? तरणं तत्र अयंपुला ! दोचंपि अयमेया तंचेव सव्वं भाणियव्वं जाव सावत्थि णयरिं मज्झं मज्झेणं जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे जेणेव इहं तेणेव हव्यमागए, सेणूणं मे अयंपुला ! अट्ठे समट्ठे ? हंता अस्थि ॥ १२२ ॥ जंपिय अयंपुला ! तत्र धम्मायरिए धम्मो एसए ॥ १२१ ॥ आजीविक स्थविर अयंपुल को ऐसे बोले कि अहो अयंपुल ! पूर्व रात्रि में कुटुम्ब जागरणा जागने ऐसा अध्यवसाय हुबा कि हल्ला का कैसा आकार है ? पुनः तुझे दूसरी वक्त भी ऐसा अध्यवसाय हवा यावत् श्रावस्ती नगरी के बीच में हालाहला कुंभकारिणी की कुंभकारशाला में यहां पर आया. अहो अयंपुल ! क्या बात सत्य है ? हां यह बात सत्य है || १२२ ॥ अहो अयंपुल ! तेरा धर्माचार्य ।
सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
# प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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