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शब्दार्थ 4जी
ज० ज्वलंत व्हा. स्नान किया जा. यावत् अ. अल्प. म. महर्घ्य आ० आभरण अ० अलंकृत स०/शरीरवाला सा० अपने गि० गृह से प० नीकलकर पा० पग मे चा० चलते सा० श्रावस्ती ण नगरी की
• मध्य बीच में से जे० जहां हा० हालाहला कुं. कुंभकारी की कुं० कुंभकारशाला ते. वहां उ० आकर पा. देखकर गो० गोशाला मखली पुत्र को हा० हालाहला कुं० कुंभकारी की कुं० कुंभकारशाला में अं० आम्र फल ह० हस्तगत जा. यावत् अं० अंजली कर्म क० करता हुवा सी० शीतल म० मृत्तिका जा०
जाव अप्पमहग्घाभरणलंकिय सरीरे साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमइत्ता पादविहार चारेणंसावत्थि णयरिं मझं मझेणं जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता पासइ पासइत्ता गोसालं मंखलिपुत्तं हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अंबकूणमहत्थगयं जाव अंजलि
कम्मं करेमाणे सीयलियाए मटिया जाव गाथाइं परिसिंचमाणं पासइ, पासइत्ता भावाथे
कर प्रभात होते उसने स्नान किया यावत् अल्पभार व बहुमूल्यवाले आभरणों से शरीर अलंकृत किया. और अपने गृह से नीकलकर पादविहार से श्रावस्ती नगरी की बीच में होता हुवा हालाहला कुंभकारिणी की कुंभकार शाला में आया. वहां हालाहला कुंभकारिणी की कुंभकारशाला में हस्तमें आम्र सहित यावत् । अंजली कर्म करता हुवा व शीतल जल से गात्रों को सिंचन करता हुवा मंखली पुत्र गोशाला को देखकर
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी ६
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *