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शब्दार्थ
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२०१७
- पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र 438
घ. धर्मोपदेशक गो० गोशाला मं० मखली पुत्र उ० उत्पन्न णा ज्ञान द० दशन घ० धारन करनेवाले जा. यावत् स. सर्वज्ञ स० सर्व दर्शी इ. यहां सा० श्रावस्ती ण नगरी में हा. हालाहला कुं० कुंभका रिणी की कुं. कुंभकारशाला में आ० आजीविक संघ से सं० परवरा आ० आजीविक स० मत से अ०१४ स्वतःको भा० चिंतवता वि० विचरता था तं० इस लिये से अंय मे० मुझे क. कल जा० यावत् ज० जलत गो. गोशाला मं० मखली पुत्र को वं. वंदना कर जा. यावत् प० पासना कर इ० यहां ए०१ ऐमा वा प्रश्न वा करने को ति० ऐसा क० करके एक ऐसा विचार कर क. कल जा. यावत्
एवं खलु मम धम्मायरिए धम्मवएसए गोसाले मंखलिपुत्ते उप्पण्णणाणदंसणधरे जाव सव्वण्णू सव्वदारसी इहेब सावत्थीए णयरीए हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणसि आजीवियसंघ संपरिवुडे आजीविय समएणं अप्पाणं भावमाणे विहरइ, तंसेयं खलु मे कल्लं जाव जलंते गोसालं मखलिपुत्तं वंदित्ता जाव पज्जवासित्ता.
इमं एयाणुरूवं वागरणं वागरित्तए त्तिकहु एवं संपेहेइ २त्ता कल्लं जाव जलंतं व्हाए कय दर्शी मखलीपुत्र गोशाला श्रावस्ती नगरी में हालाहला कुंभकारिणी की कुंभकारशाला में आजीविक संघ सहित आजीविक मत को भावते हुवे विचरते हैं. इससे कल प्रभातमें सूर्य उदित होते मंखली पुत्र गोशालाकी पास जाकर और उन को वंदना नमस्कार यावत् पर्युपासना कर ऐमा प्रश्न पूछना मुझे श्रेय है. ऐसा विचार
पनरहवा शतक
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भावार्थ