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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
* पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
{ हस्त से गा० गात्रों को प० स्पर्श करे जे० जिससे ते० वे दे० देव सा० अनुमोदावे से० वह आ० आशीविषपने क० कर्म प० करे जे० जीससे ते ० वे दे० देव णो० नहीं आ० अनुमोदावे त० उस का स० स्व स० शरीर में अ० अनिकाय सं० उत्पन्न होवे स ० वह स० स्वतः के ते ० तेज से स० शरीर को झा० जलावे त० उस प० पीछे सि० सीझे जा० यावत् अं० अंतकरे से० यह सु० शुद्ध पानक ॥ ११७ ॥ त० तहां सा० श्रावस्ती ण० नगरी में अ० अयंपुल आ० आजीविक उ० उपासक प० रहता है अ० आसीविसत्ताए कम्मं पकरेइ ॥ जेणं ते देवे णो साइज्जइ तस्सणं संसि सरीरगंसि अगणिकायं संभवति, सेणं सएणं तेएणं सरीरगं झामेइ स० २, तओ पच्छा सिज्झति जाव अंतं करेंति सेतं सुद्धा पाणए ॥ ११७ ॥ तत्थणं सावत्थीए णयरीए अयं पुणामं आजीवियउवासए परिवसइ अड्ढे जहा हालाहला, आजीवियसमएणं गात्रों को स्पर्श करे. यदि उन देवताओं को अनुमोदे अर्थात् ये देव अच्छा करते हैं ऐसा कहे तो वह आशीविष पानी का कर्म करता है, यदि उन देवताओं को अनुमोदे नहीं तो उन के शरीर में अग्नि काम उत्पन्न होवे, अपने तेज से अपना शरीर को जलावे और पीछे सीझे बुझे यावत् सब दुःखों का अंत करे. यह शुद्ध पानी कहा जाता है | ११७ ॥ उस श्रावस्ती नगरी में अयंपुल नाम का आजीविक उपासक रहता था. वह हालाहला कुंभकारिणी जैसा ऋद्धिवंत था और आजीविक समय में स्वतः
40 पनरहत्रा शतक
२०९९