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शब्दार्थ)
सूत्र
भावार्थ
शिबली पान से० अथ किं० क्या सु० शुद्धपान सु० शुद्धपानक जे० जो छ० छमास खा० खादिम खा० खाता है दो० दोमास पु० पृथ्वी पर उ० रहे दो० दोमास क० काष्ट सं० संथारापर उ० रहे दो० दो पास द० दर्भ संथारा पर उ० रहे त० उस को ब० बहुत प० प्रतिपूर्ण छ० छमास की अं० अंतिम रा० रात्रि में इ० ये दो० दो दे० देव म० महर्द्धिक जा० यावत् म० महा सुखवाले अं० पास पाο प्रगट होते हैं सं० वैसे पु० पुर्णभद्र मा० माणभद्र त तब से० वे दे० देव सी० शीतल उ० भीने ६० दोमासे पुढविसंथारोवगए, दोमासे कटुसंथारोवगए, दोमासे दब्भसंथारोवगए, तस्सणं बहुपडि पुण्णाणं छण्हं मासाणं अंतिमराइए इमे दो देवा महिड्डिया जाव महेसक्खा अंतियं पाउन्भवंति, तंजहा पुण्णभद्देय, माणिभद्देय ॥ तएणं से देवा सीयालिएहिं उल्लएहिं हत्थेहिं गायाई परामसंति ॥ जेणं ते देवा साइज्जइ सेणं स्पर्श करे विशेष स्पर्श करे परंतु पानी पीछे नहीं, उसे फली का पानी कहते हैं ? जो कोई छ मास पर्यंत शुद्ध खादिम [ मेत्रा ] खावे, दो मास पर्यंत भूमि पर मास पर्यंत काष्ट पर शयन करे, और दो मास पर्यंत दर्भ पर शयन करे. इस तरह करते
कहते है.
अब
* भद्र व माणभद्र ऐसे दो महर्द्धिक यावत् महासुखवाले देव उत्पन्न होवे. अब वे देवता शीतल व आर्द हस्त से
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
शुद्ध पानी किसे
शयन करे, दो
छ मास में पूर्ण
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी #
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