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शब्दार्थ चरिम म० महाशिला के० कंटक संग्राम अ० मैं इ० इस ओ० अवसर्पिणी के चो० चौवीस वि० तीर्थकर
में से च० परिम ति० तीर्थंकर सि० सीझंगा जा० यावत् अं० अंत करूंगा ॥११६॥ . यद्यपि अ०१७ आर्य गो० गोशाला में० मखलीपुत्र सी० शीतल म० मृत्तिका पा० पानी से आ० मीट्टि से मीला उ० पानी से गा० गात्रों को १० सींचन करता हुवा वि० विचरता है त० उस व. पाप को भी व० छीपाने के लिये इ० ये च० चार पा० पान च० चार अ० अपान प० प्ररूपता है से० अथ किं० क्या पा० पान पा०14
महासिलाकंटए संगामे ॥ अहं च णं इमीसे ओसाप्पणीए चउवीसाए तित्थंकराणं ३ चरिमे तित्थंकरे सिन्झिस्सं जाव अंतं करेस्सं ॥ ११६ ॥ जंपिय अजो ! गोसाले मंखलिपुत्ते सीयलएणं मट्टिया पाणएणं आयंचाण उदएणं गायाई परिसिंचमाणे. विहरइ, तस्सविणं वज्जस्स पच्छादणट्ठयाए इमाइं चत्तारि पाणगाइं चत्तारि अपाण-.
गाइं पण्णवेइ ॥ सेकिंतं पाणए ? पाणए चउबिहे पण्णत्ते, तंजहा गोपुटुए, हत्थभावार्थ E४ चरिम अंजली ५ चरिम पुष्कल संवर्त महामेघ ६ चरिम सेचानक गंधहस्ती ७ चरिम महा शिला.
कंटक संग्राम और ८ इस अवसर्पिणी में चौवीस तीर्थंकरों में मैं चरिम तीर्थकर होकर सिट बट में होऊंगा यावत् सब दुःखों का अंत करूंगा ॥ ११६ ॥ और भी अहो आर्यो ! मंखली पुत्र गोशाला मृत्तिका मीश्रित शीतल जल से अपने गात्रों को सींचता हुवा विचरता है. इस पाप को छिपाने के लिये
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 488
84844पनरहवा शतक 40888