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शब्दार्थ करने के लिये जं० जो अ० आज गो० गोशाला में• मंखलीपुत्र हा० हालाहला कुं० कुंभकारी की।
कुं• कुंभकार शाला में अं० आम्रफल ह० इस्तगत म० मद्यपान पि० पीता हुवा जा० यावत् अं• अंजली कर्म क० करता हुवा वि० विचरता है ॥११५॥ त० उस व० पापको ब० ढकने के लिये इ० ये अ०१ आठ च• चरिम प० प्ररूपे च० चरिम पा० पान च० चरिम मे० गीत च० चरिम ण. नृत्य च० चरिम अं० अंजलीकर्म च चरिम पो• पुष्कल सं० संवर्तक म० महामेघ से० सेचनक ग• गंधहस्ती च०
लगाणं, अवाहाणं संभुत्तराणं घाताए वहाए उच्छादणट्ठयाए भासीकरणयाए जंपिय
अज गोसाले मंखलिपुत्ते हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अंबकूणगत्थगए १ मज्जपाणं पियमाणे अभि जाव अंजलिकम्मं करेमाणे विहरइ॥११५॥ तस्सविणं वज
स्स पच्छादणट्ठयाए इमाइं अट्ठ चरमाइंपण्णवेइ,तंजहा चरिमे पाणे, चरिमेगेये, चरिमेणट्टे,
चरिमे अंजलि कम्मे चरिमे पोक्खलस्स संवटए महामेहे, चरिमे सेयणए गंधहत्थि, चरिमे । भावाथे
१५ अवध और १६ संयुक्त इन सोलह देश की घात करने को, वध करने को, जलाने को व भस्म करने
को समर्थ होती. आज वही गोशाला हालाहला कुंभकारीणी की कुंभकार शाला में हस्त में आन सहित ल मद्यपान पीना हवा यावत् अंजली कर्म करता हुवा विचरता है ॥ ११५ ॥ उस पाप कर्म को छिपाने के
लिये वह आठ चरिम की प्ररूपणा करता है. जिन के नाम- १ चरिम पान २ चरिम गान३ चरिम नाटक
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालामसादजी *