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शब्दार्थमंखलापिच को उ० प्राप्त होकर वि० विचरने लगे ॥१३॥त. तब से वह गो० गोशाला मं० मखली-14
पुत्र ज० जिस लिये ह० शीघ्र आ० आयाथा त• उसे अ० नहीं साधता रुं० इन्द्रादि ५० देखता दी. दीर्घ उ० ऊष्ण नी० निवास डालते दा. दाढी के लो० रोम लु० तोडेता अ० पुरुषलिंग कुं० खजालता पु. पुततटि १० फोडता है. हस्त वि० मसलता दो० दोनों पा. पांव से भू० भूमि को० कुटते
हाहा अ० अरे ह० हणाया अ. मैं अ० हूं ति. ऐसा क० करके स० श्रमण भ. भगवंत म012 गइया आजीवियथेरा गोसालं चेव मंखलिपुत्तं उक्संपजित्ताणं विहरति ॥ ११३ ॥ तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते जस्सट्टाए हव्वमागए तमट्टमसाहेमाणे रुंदाई पलोएमाणे दीहुण्हाइं नीससमाणे, दाढियाए लोमाए हुँचमाणे, अवटुं कंडुयमाणे, पुयलिं पप्फोडेमाणे हत्थे विणिडुणमाणे दोहिंविपाएहिं भूमि कोट्टेमाणे हाहा अहो हतो हम
स्सतीति कटु समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडिभावार्थ नेश्राय में रहकर विचरने लगे ॥ ११३ ॥ अब मंखली पुत्र गोशाला जिस कार्य (महावीर स्वामी का वध )
के लीये आया था उस कार्य को नहीं साध सकने से दशोंदिशि में दीर्घ दृष्टि से देखता हुवा, दीर्घ नीश्वास डालता हुवा, दाढी के बालों हाथ से खींचता हुवा, गरदन खजालता हुवा, दोनों हस्त परस्पर मसलता हुवा, दोनों पांचों से जमीन तोडता हुवा, 'हाहा,''अहो' 'मैं हणाया' ऐसा करके भगवंत श्री महावीर
488 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र <age
488487 पन्नरहवा शतक
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