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शब्दार्थ हुवा स० श्रमण णि. निर्ग्रन्थ के स० शरीर को कि० किंचित् अ० अबाधा वि. व्यावाध उ० उत्पन्न .
करने को छ. चर्म छेद क- करने को ॥ ११२ ॥ त० तब आ० आजीविक थे० स्थविर गो० गोशाला मं० मखलीपत्र को सश्रमण निग्रंथ से ध. धार्मिक ५० प्रतिचोयणा से ५० चोयणा कराता हुवा ध० धार्मिक १० प्रतिसारणा कराता हुवा ध० धार्मिक प. प्रत्युपकार से प० प्रत्युपकार कराता हुवा अ० अर्थ हे० हेतु जा. यावत् की० करता आ० आसुरक्त जा. यावत् मि० दांत पीसता हुवा स० श्रमण ०७ मिसेमाणे णो संचाएइ ।। समणाणं णिग्गंथाणं सररिगस्स किंचि आवाहं वा बावाहं वा उप्पएत्तए छविच्छेदं वा करेत्तए ॥ ११२ ॥ तएणं ते आजीविया थेरा गोसालं मंखलिपुत्तं समणेहिं णिग्गंथेहिं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएजमाणं धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारिजमाणं धम्मियेणं पडायारेणं पडोयारिजमाणं अट्रेहिय हेऊहिय
जाव कीरमाणं आसुरुत्तं जाव मिसिमिसेमाणे समणाणं णिग्गंथाणं सरीरगस्स किंचि प्रश्न, हेतु यावत् व्याकरण से उत्तर रहित किया, तब वह आसुरक्त यापत् क्रोधित हुवा; परंतु आपण "
निर्ग्रन्थों को किंचिन्मात्र वाधा पीडा उत्पन्न कर सका नहीं, वैसे ही चर्मछेद भी कर सका नहीं ॥ ११२ ॥ 8 अब श्रमण निग्रंथों मखली पुत्र गोशाला की साथ धर्म की चोयणा, प्रतिचायणा प्रतिसारणा, धर्ममय
मविवचन से उपकार करनेपर और उन को हेतु प्रश्न, यावत् व्याकरण से उत्तर देने में असमर्थ करने पर।
48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
पन्नरहवा शतक 8
भावार्थ
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