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शब्दार्थ गोशाला मं० मंखलीपुत्र को घ० धार्मिक प० चोयणा से प० चोयणा की १० प्रतिसारणा से प०
प्रतिसारणा की प० प्रत्युपकार से प० प्रत्युपकार किया अ० अर्थ हे० हेतु का० कारन से जा० यावत् वा० ( उत्तर क० किया ।। ११ ।। त० तब से वह गो० गोशाला मं० मंखलीपुत्र स० श्रमण णि० निर्ग्रन्थों से १६० धार्मिक प० प्रातचोयणा से प चोयणा कराया हुवा जा० यावत् णि० पुछाये हुवे प० प्रश्न ( वा० व्याकरण की० करता हुवा आ० आमुरक्त जा० यावत मि० दांत पीसता हुवा णो० नहीं सं० समर्थ मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोति ध० २ धम्मियाए पडिमारणाए पडिसारेति ध० २, धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारति ध० २, अट्ठेहिय हेऊहिय, कारणंहिय जाव वागरणं करेंति ॥ १११ ॥ तएण से गोसाले मंखलिपुत्ते समणेहिं णिग्गंथेहिं धम्मियाए पडिवोयणाए पडिचोइज्जंमाणे जाव णिप्पट्ठपसिणवागरणे कीरमाणें आसुरुत्ते जाव मिसि - { नमस्कार किया. और वंदना नमस्कार कर मंखली पुत्र गोशाला की पास गये. वहां मंखलीपुत्र गोश:ला की साथ धर्म की चोयणा प्रतिचोयणा करके धर्म की प्रतिसारणा की, धर्ममय प्रतिसारणा करके धर्म(मय प्रतिवचन से उपकार किया, और अर्थ, हेतु, कारण यावत् व्याकरण से उत्तर देने में असमर्थ किया } ॥ १११ ॥ जब मंखली पुत्र गोशाला की साथ श्रमण निर्ग्रथोंने धर्म की चायणा, प्रति चोयणा यावत् ।
सूत्र
भावार्थ
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4. अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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