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शब्दार्थ 4 निर्ग्रन्थों को आ- आमंत्रण कर एक ऐसा ब० बोला अ० आर्य से० अथ ज० जैसे त• तृण का समुह
ट का समूह प० पत्र का समह त त्वचा का समह तफस का समूह भ० भूसे का समह गो गोबर का समुह अ० कचवर का समुह अ० अग्नि से जला हुवा अ० अग्नि से स्पर्शा अ० अग्नि से प० परिणमाभ ह० हत तेजवाला ग० गया हुवा तेजवाला ण. नष्ट तेजवाला भ० भ्रष्ट तेजवाला लु० लुप्त तेजवाला वि. विनष्ट तेजवाला जा. यावत् एक ऐसे गो० गोशाला में. मेखलीपुत्र म. मेरा ५० वध केलिये स०१ शरीर में से ते० तेज णि नीकाल कर ह० हत तेजवाला ग० गत तेजवाला जा. यावत् वि० विनष्ट
समणे णिग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी अजो ! से जहा णामए तणरासीतिवा कट्ररासीतिवा पत्तरासीतिवा, तयारासीतिवा, तुसरासीतिबा, भुसरासीतिवा, गोमयरासीतिवा, अवकररासीतिवा अगणिज्झामिए अगणिज्यूसिए अगणिपरिणामिए हयतेए गयतेए णट्ठ
तेए भट्ठतेए लुत्ततेए विण?तेए जाव एवामेव गोसाले मंखलिपुत्ते ममं भावार्थ वहाए सरीरगसि तेयं णिसिरित्ता हयतेए गयतेए जाव विण?तेए, तं छंदेणं अजो!
स्वामी श्रमण निग्रंथों को उद्देश कर ऐसा बोले कि अहो आर्यो ! जैसे तृण, काष्ट, पत्र, त्वचा, तुष, फूस,
गोमय और कचरे की राशि आग्नि से जलने से, बलने से व परिणमने से, तेज रहित होती है ऐसे ही मेरा | वध के लिये तेज नीकालने से मंखलीपुत्र गोशाला तेज रहित हुवा है. इसलिये अहो आर्यो ! इच्छानुसार
अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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