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शब्दार्थ
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पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र १
हैं ए. ऐसे दे० देवानुप्रिय सा० श्रावस्ती ण नगरी की ब बाहिर को० कोष्टक चे. उद्यान में दु०१ दो जि० जिन स० विवाद करते हैं ए. एक ए. ऐसा व कहते हैं तु० तुम पु. पहिले क० काल क. करेंगे ए. एक एक ऐसा व० बोले तु. तुम पु० पाहिले का० काल क० करेंगे त. उस में के० कौन स० सम्यक बोलने वाला के कौन मि० मिथ्या बोलने वाला त• उस में जे. जो अ० अहंप्रधान ज० मनुष्य से वे ब. बोले स० श्रमण भ. भगवंत म. महावीर त. सम्यग् वादी गो० गोशाला मं० मखलीपुत्र मि० मिथ्यावादी ॥ १०९ ।। अ. आर्य म. श्रमण भ. भगवंत म० महावीर स: श्रमण णि
प्पिया! सावत्थीए णयरीए बहिया कोट्टए चेइए दुवे जिणा संलवति एगे एवं वयासीतुमं पुचि कालं करिस्ससि एगे एवं वदंति तुमं पुब्बि कालं करिस्सासि तत्थणं के सम्मावादी
के मिच्छावादी ? तत्थणं जेसे अहप्पहाणे जणे से वदंति समणे भगवं महावीरे सम्मा___ वादी गोसाले मंखलिपुत्ते मिच्छावादी ॥ १.९॥ अजोत्ति समणे भगवं महावीरे
शृंगाटक यावत् पहापथ में लोगों परस्पर ऐसा कहने यावत् प्ररूपने लगे कि अहो देवानुप्रिय! श्रावस्ती नगरी के बाहिर कोष्टक उद्यान में दो जिन को परस्पर विवाद होता है; उस में एक ऐसा कहता है, कि तू
पहिले काल करेगा और दूसरा ऐसा कहता है कि तू पहिले काल करेगा. इस में कौन सम्यग्वादी और 6. कौन मिथ्यावादी? उन में जो मुख्य मनुष्यों थे. थे ऐसा कहते थे कि श्री श्रमण भगवंत महावीर
स्वामी सम्यग्वादी और मंखली पुत्र गोशाला मिथ्यावादी है ॥ १०९॥ अब श्रमण भगवंन महावीर।
पन्नरहवा शतक 48488
भावार्थ
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