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शब्दार्थ
अंग गो गौतप तक तीन पें पिता के अंग अष्टि अहडिकीमिंज के केश मं-मश्रु रो रोमन नख॥१॥ अ० माता पिता का भं भगवन् सशरीर के कितना का काल सं० रहे गो गौतम जा. जितना काकाल भ० भवधारणीय स० शरीर अनाश न पामे ए• इतना का. काल सं० रहे अ. अब स०ममय २ में वो. हीन होता च० चरिम का काल म समय में वो नाश भ० होघे ॥ १८ ॥ जी. जीव भं० भगवन
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पंचमांग विवाह पण्णत्ति भगवती
पणत्ता ? गोयमा ! तओ पेइयंगा पण्णता तंजहा अहि, आहमिंजा, केसमंसुरोमनहे ॥ १७ ॥ अम्मा पेइएणं भंते ! सरीरए केवइयं कालं सचिट्ठइ ? गोयमा ! जावइयं से कालं भवधारणिजे सरीरए अब्वावण्णे भवइ, एवतियं कालं संचिट्ठइ. अहेणं समए समए वोयसिजमाणे चरिम काल समयसि वोच्छिण्णे भवइ ॥ १८ ॥ जीवेणं
पहिला शतक का सातवा उद्देशा
भावार्थ शरीर में पिता के तीन अंग होते हैं. १ अस्थि, २ अस्थि की माजी केश श्मश्रु रोम व नख. ॥१७॥
अहो गवन् ! माता व पिता के अंग जीव की साथ कितने काल तक सम्बन्ध रखते हैं. ? अहो गौतम : जहांलग मनुष्यादिक का भवधारणीय शरीर विनाश होवे नहीं वहां लग माता व पिता के अंग रहते हैं.
अर्थात् शरीर का विनाश होनेपर इन अंगों का भी विनाश होता है. जिस समय से माता व पिता के * अंगों संबंधी आहार ग्रहण किया था उस समय से लगाकर प्रति समय क्षीण होते २ अन्तिम काल
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