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शब्दार्थ
अनुवादक-बालब्रह्मचारामुनि श्री अमोलक ऋषिजी में
जीव ५० प्रतिवद्ध पुः पुत्रका जीव फु० स्पशी हुवा तः इसलिये आ० आहार कर प. परिणम व अथ. वा पु. पुत्रका जीव ५० प्रनिबद्ध मा०माता का जीव से फु० स्पर्शा हुवा तः इस लिये चिचिने उ० उपचेने से• वह ते. इमलिये जा: यावत् नो० नहीं मु, मुख से का. कवल आ. आहार आ. आहार करे ॥ १५॥ क. कितने भ० भगवन मा० माता के अंग गो० गौतम त तीन मा० माता के अंग प. प्ररूप में मास सो काधर म० मस्तक ॥ १६ ॥ क. कितने भं. भगवन पे० पिता के
फुडा, तम्हा आहारइ, तम्हा परिणामेइ, अविरावियणं पुत्तजीव पडिबदा माउजीव फुडा तम्हा चिणाइ, तम्हा उवचिणाइ. से तेणटेणं जाव नो पभ मुहणं कावलियं,
आहारं आहारित्तए ॥ १५ ॥ कइणं भंते ! माइअंगा पग्णत्ता ? गायमा ! तओ माइयगा पण्णता तंजहा मंससोणिए मत्थलंग ॥ १६ ॥ कणं भंते ! पेइयंग! प. आहार करता है और शरीर में परिणमाना है. दुमरी पुत्रजीवरमहरणा नाडी पुत्रक जीव की माय बंधी हुई व माता की साथ स्पर्शी हुई है. इस से गर्भस्थ जीव के शरीर की वृद्धि होती है. इसीसे अहो गौतम ! कवल आहार लेन को गर्भस्थ जीव नहीं ममर्थ होता है ॥१५॥ अहो भगवन ' माता के कितने अंग कह हैं ? अहो गौतम : माता के तीन अंग कहे हैं. माम. रुधिर व मस्तक की मीजी फे.फसा अथवा कलेजा मा भी अर्थ कितनेक करते हैं. ॥ १६ ॥ अहो भगवन : पिता के कितने अंग है अहो गौतम:
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवमहायजी नालाप्रमादनी *
भावार्थ
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