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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
48 पंचांग विवाह गति ( भगवती ) मूत्र
भगवन गर गर्भ में उत्पन्न मु {इ० यह अर्थ स० समर्थ से
मुखसे का कवल आ० आहार आ आहार करे गो० गौतम नो नहीं है. वह के० कैसे गो० गौतम जी जीव ग० गर्भ में उपजा स० सर्व तरफ से आ० आहारकरे प० परिणने उ० ऊश्वासले नि० निश्वासले अ० वारंवार आ आहारकरे पं० प रिणमे उ० ऊश्वासले नि० विश्वासले आ० कदाचित् आ० आहार करे प० परिणमे उ० ऊश्वासले (नि० निश्वासले मा माताका जीव र० नाभिनाल पु० पुत्रका जीव २० नाभिनाल मा० माता का कावलियं आहारं आहारितए ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे । सेकेणट्टेणं ? गौयमाजीवेणं गब्भगए समाणे सव्वओ आहारेइ, सव्वओ परिणामेइ, सव्वओ उस्ससइ, सव्वओ निस्ससर अभिक्खण आहारेइ अभिक्खणं परिणामेइ अभिक्खणं उस्ससइ अभिक्खणं निरससइ, आहच्च आहारेइ आहच्च परिणामेइ, आहच्च उस्ससइ, आहच्च निस्ससइ, माउ जीव रसहरणी पुत्तजीव रसहरणी माउ जीव पडिबद्धा पुत्तजीव कवल का आहार कर सकता है ? अहो गौतम ! यह अर्थयोग्य नहीं है. अहो भगवन् ! किस कारन से ! अहां गौतम ! गर्भ में रहा हुवा जीव सब आत्मा से आहार करता है, परिणमाता है, उश्वास लेता है, नीश्वास लेता है, वारंवार आहार करता है, वारंवार परिणमाता है, वारंवार श्वासोश्वास लेता है, अथवा ? क्वचित् अहार करता है, परिणमाता है व श्वासोश्वास लेता है. गर्भवती स्त्री को नाभीस्थान में रसहरणी नामक एक नाडी नली रूप होती है. वह नाली गर्भस्थ जीव को स्पर्शकर रहती है. उस से वह जीव
० पहिला शतकका सातवा उद्देशा
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