SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शहाथ विडीनीत पा लपनीत खे: थूक मिश्लप्म वमन पि० पित्त गो० गौतम नो नहीं इ. यह अर्थ स. समर्थ से• वह के० कैसे गो. गौतम जी० जीव ग. गर्भ में ग• गयाहुवा जं. जो आ० आहार करता है सं० उसको चि० इकठा करता है ते. उसको सो० श्रोतेन्द्रियपने जा. यावत् फा० स्पर्शेन्द्रियपने अ०१ हहि अ० हड्डिकीजिंजी के केश मं०३मश्र रो रोम ननखपने से वह ते ०इसलिये ॥ १४ ॥ जी०जीव भं मत्र समाणस्स अत्थि उच्चारेइवा, पासवणेइवा, खेलेइवा, सिंघाणेइवा, वतइया, पित्तेइवा ? । गोयमा ! णोइण? समटे. ! से केणटेणं ? गोयमा ! जीवेणं गभगए समाणे ११ जमाहारेइ तं चिणाइ, तं सोइदियत्ताए जाव फासिंदियत्ताए, अट्ठि अट्रिमिंज केस मंसुरोम नहत्ताए से तेणटेणं ।। १४ ॥ जीवेणं भंते ! गब्भगए समाणे पभमुहेणं का ओज आहार करता है. ॥ १३ ॥ जहां आहार होता है वहां निहार होता है इसलिये निहार संबंधि भावाथे प्रश्न करते है. अहो भगवन् ! गर्भ में रहा हुचा जीव को वडीनीत, लघुनीन खेकार, श्लेष्म, वमन , व पित्त क्या होता है ? अंडी गौतम ! गर्भ में रहे हुवे जीव को यह नही होता है. अहो भगवन् ! ऐमा होने का क्या कारण है . अहो गीतम: गर्भ में रहा हुवा जीव जो आहार करता है वह सब आहार लश्रोत्रेन्द्रियादि पांचो इन्दियपने, हड्डी हड्डी की मिजी, केश, मश्र रोम व नखपने परिणमता है इसलिये उन जीवों को लघुनीत वहीनीत वगरह नहीं होते हैं ॥१४॥ अहो भगवन् ! गर्भ में रहा हवा जीव क्या marriamernama Po" अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी * प्रकाशक-गाजावहादूर लाला मुखदेवमहायजी चालाप्रमादजी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy