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२००७
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शब्दार्थ मा० मत ए. ऐसे गो० गोशाला जा. यावत् णो• नहीं अ. अन्य ॥ १०४ ॥ त तब से वह गो.
गोशाला मं० मेखलीपुत्र स० श्रमण भ० भगवंत म. महावीर से ए. ऐसा वु० बोलाया आ० आमुरक्त 'ते. तेजस स० समुद्धात स० करके स० सात आठ प० पांच प० पीछा जाकर स० श्रमण भ०. भगवंत०७
म. महावीर का व० वध के लिये स० शरीर में से ते. तेज णि नीकाला ॥ १०५॥ ज. जैसे वा वात उ० उत्कलिक वा० वायु मं० मंडलिक से० पर्वत को कु० कुटको यं० स्तंभ को आ० स्खलना पाता
एवं गोसाला ! जाव णो अण्णा ॥ १०४ ॥ तएणं से गोसाले मंखालिपुत्ते समणेणं . भगवया महावीरेणं एवं वुत्तेसमाणे आसुरुत्ते तेयासमुग्घाएणं समोहणइ, समोहणइत्ता सत्तट्ठपयाई पच्चीसक्कइ, पच्चासकइत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स घहाए सरीरगंसि तेयं हिस्सरइ ॥ १.५ ॥ से जहा जामए वाउक्कलियाइवा वाय
मंडलियाइवा सेलंसिवा कुडुयंसिवा थंभंसिवा आवरिजमाणावा थूमंसि णिवारिजमाणावा भावार्थ मत कर. ऐसा करना तुझे योग्य नहीं है. अहो गोशाला ! यह तेरी छाया है अन्य कुच्छ भी नहीं है।
है ॥ १०४ ॥ जब श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने ऐसा कहा तब मंखली पुत्र गोशाला आसुरक्त यावत् ।। 3 क्रोधित हुवा, तेजस समुद्धात करके सात आठ पांव पीछा गया और श्रमण भगवंत महावीर स्वामी 1 का वध के लिये तेज नीकाला॥१०॥जैसे बातोत्कलिका अथवा मंडलिका वायु शैल, कूट व स्तंभ से स्खलना पानी
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र
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पनरहवा शतक 480
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