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शब्दार्थ
से आ० आक्राश
भगवंत म० महावामा माहण का
हुआ
अनुवादकबालब्रह्मचारी मुनि श्री अम लक ऋषिजी g
आ० आक्रोश से आ० आक्रोश किया स. सकतं. वैसे जा. यावत् मु० सुख । नहीं है. ॥ १०३ ॥ त० तब स० श्रमण भ. भगवंत म० महावीर गो० गोशाला मं० मंखली पुत्र को। ए. ऐसा व० बोले जे० जो गो० गोशाला त० तथारूप स० श्रमण मा० माहण की तं. वैसे जा० यावत् प० पर्युपासना करते हैं कि कैसे पु० पुनः गो० गोशाला तु० तुम म० मेरेसे प० प्रवजित हुआ जा० यावत् म० मेरेसे ब० बहु सूत्री कराया म० मेरेसे मि० मिथ्या प० अंगीकार किया त० इसलिये
मंखलिपुत्ते सुनक्खत्तं अणगारं तवेणं तेएणं परितावेत्ता तच्चंपि समणं भगवं महावीर उच्चावयाहिं आउसणाहिं आउसइ सव्वं तंचेव जाव सुहं णत्थि ॥ १०३ ॥ तएणं समणे भगवं महावीरे गोसालं मखलिपुत्तं एवं वयासी जेवि ताव गोसाला! तहारूवस्स समणस्सवा माहणस्सवा तंचेव जाव पज्जुवासति, किमंग पुण गोसाला !
तुम्हं मएचेव पव्वाविए जाव मएचेव बहुसुईकए ममंचेव मिच्छं विप्पडिवण्णे तं मा बत भी श्रमण भगवंत महावीर को ऊंच नीच आक्रोशकारी वचनों से आक्रोशकर यावत् तुझे सुख में नहीं है ॥ १०३ ॥ तब श्रमण भगवंत महावीर स्वामी मंखलीपुत्र गोशाला को ऐसा बोले कि अहो गोशाला! जो कोई तथारूप श्रमण माहण की पास से मात्र एक आर्य धर्म के सुवचन श्रवण करते उन की वंदना पूजा यावत् पर्युपासना करते हैं, तो अहो गोशाला ! मेरे से दीक्षित बना हुवा यावत् मैंने बहुसूत्री बनाया हुवा मेरे से ही मिथ्यात्वभाव अंगीकार कर रहा है. अहो गोशाला ! ऐसा
प्रकाशक राजावहदुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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