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शब्दार्थ
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२०७५
48 पंचमाङ्ग विवाह पञ्णाति ( भगवती ) मूत्र 48
अनगार गो० गोशाला मं० मंखली पुत्र के त० तप ते० तेजसे प० पीडित जे. जहां स० श्रमण म. भगवंत म. महावीर ते. वहां उ० आकर स० श्रमण भ० भगवंत म. महावीर को ति० तीन बार व० वंदनकर ग. नमस्कार कर स० स्वयमेव पं० पांच म० महाव्रत की आ०आराधना की स० साधु स० साधी को ख० खमाये खा. खमाकर आ० आलोचना १० प्रतिक्रमण स. समाधि प्राप्त आ० अनुक्रम १से का. काल किया ॥ १०२ ॥ त० तब से वह गो गोशाला सु० सुनक्षत्र अ. अनगार को त०१ तप तेजसे प० पीडितकर के त० तीसरी वख्तभी स० श्रमण भ० भगवंत म. महावीर को उ० ऊंचनीच
तवेणं तेएणं परिताविए समाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो वंदई णमंसइ, णमंसइत्ता सयमेव पंचमहब्बयाई आरुहेइ, आरुहेइत्ता समणाय समणीओय खामेइ, खामेइत्ता आलोइय पडिक्कते. समाहिपत्ते आणपन्वीए कालगए ॥ १.२॥ तएणं से गोसाले
849 पमरहबा शतक88+
भावार्थ
वंत महावीर स्वामी की पास गये और उनको तीन वार वंदना नमस्कार कर स्वयमेव पांच महा व्रतं की आराधना कर साधु साध्वीयों को खमाकर आलोचना प्रतिक्रमण करके सामाधि प्राप्त बना हुवा काल को प्राप्त हुए । १०२॥ अपने तफ्तेज से मुनक्षत्र अनगार को.पीडित करके मखली पुत्र गोशाला तीसरी
में