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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी +
शिष्य को० कोशल जा० जनपद सु० सुनक्षत्र अ० अनगार प० प्रकृति भद्रिक जा० यावर गीत घ. धर्माचार्य के अ. अनुराग से ज. जैसे स. सर्वानुभात तक तैसे जा. यावत् स. सत्य तेरी सा० वह छा० छाया णो० नहीं अ० अन्य ॥१०॥ त० तब से वह गो. गोशाला मं० मेखली पुत्र सु० सुनक्षत्र अ० अनगार से एक ऐसा वु० बोलाया आ० आसुरक्त मु० सुनक्षत्र अ० अम्मार को त० तप के ते. तेजने ५० पोडित किया ॥ १०१ ॥ त० तब से वह मु० सुनक्षत्र अ०
सुणक्खत्ते णामं अणगारे पगइभद्दए जाब विणीए धम्मायरियाणुरागेणं जहा सव्वाणुभूई तहेव जाव सच्चेव ते सा च्छाया णो अण्णा ॥ १० ॥ तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते सुणक्खत्तेणं अनगारेणं एवं वुत्ते समाणे आसुरत्ते सुणक्खत्तं अणगारं
तवेणं तएणं परितावेइ ।।१०१॥ तएणं से सुणक्खत्ते अणगारे गोसालेणं मखलिपुत्तणं यावत् प्रकृति विनीत सुनक्षत्र नाम के अनगार थे. वह धर्मानुरागसे गोशाला की पाम जाकर सर्वानुभूति अनगार जसे कहने लगा यावत् वह छाया है परंतु अन्य नहीं है ॥ १०॥ अब मुनक्षत्र अनगारने गोशाला को ऐसा कहा तब वह आमुरक्त यावत् क्रोधित हुवा और अपने तपतेज से उन को परितापना की. ॥१०१ ॥ इस तरह मखली पुत्र गोशाला के तप तेज से पीडित हुवा मुनक्षत्र अनगार श्रमण भग
. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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