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शब्दार्थ
२०७२
सूत्र |
है जा० यावत् क० कल्याण कारी मं० मंगलकारी दे० धर्म देव समान चे० ज्ञानवंत प०पर्युपासना करते हैं।
क्या पु० पुनः तु तुम गो० गोशाला भ० भगवंत से ५० दीक्षित हवा भ० भगवंत से मुंह त हुवा से०शिष्य बना सि० पढा ब. बहु सत्री कराया भ० भगवंत से मि० मिथ्यात्व वि० अंगीकार किया तं० इसलिये मा० मत गो गोशाला णो० नहीं रि० योग्य है गो० गोशाला स० ते० तेरी सा. वह छा० छाया णो नहीं अ० अन्य ॥९७॥ त० तब से वह गो. गोशाला मखलीपुत्र स. सर्वानुभूति अ• अनगार को एक ऐसा वु० कहाया हुवा आ. क्रोधित स० सर्वानुभूति
चेव पव्वाविए भगवया चेव मुंडाविए, भगवयाचेव सेहाविए, भगवयाचेव सिक्खाविए, भगवया चेव बहुस्सुईकए, भगवओ चेव मिच्छं विप्पडिवण्णे, तं मा एवं गोसाला! पणे रिहास गोसाला ! सच्चेव ते सा च्छाया णोअण्णा॥९७॥तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते
सव्वाणुभूइ णामं अणगारें एवं वुत्तेसमाणे आसुरुत्ते सव्वाणुभति अणगारं तवेणं अहो गोशाला ! नू भगवंत से दीक्षित बना हुवा है, भगवंतने तेरे को मुंडित किया है, पढाया है, शिक्षा दी है, भगवंतने ही तुझे बहुसूत्री बनाया है तापि भगवंत की साथ ही निश्चयभूत बनकर मिथ्याभाव अंगीकार करता है. इसलिये अहो गोशाला ! ऐसा मत कर. तुझे ऐसा करना योग्य नहीं है, यह तेरी छाया है। अन्य कुच्छ भी नहीं है ॥ ९७ ॥ सर्वानुभूति अनगारने मंखलीपुत्र गोशाला को ऐसा कहा तव बह
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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भावाथ
49 अनुवादक-बालब्रह्मचारी