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शब्दार्थ 4. {ऐसा वु० बोलाया आ० क्रोधित स० श्रमण भ० भगवंत म० महावीर को उ० ऊँचनीच आ० आक्रोश { से आ० आक्रोश किया आ० आक्रोश करके उ० ऊँचनीच उ० उध्वंस से उ० हलका बनाकर नि० निर्भर्त्सना करके णि दुष्टवचन कर ए० ऐसा व० बोला ण० नष्ट क० कदाचित् वि० विनष्ट क० कदाचित् भ० भ्रष्ट अ० आज ० नहीं अ णा० नहीं ते० तुझे म० मेरेसे सु० सुख अ० है || ९६ ॥ ते० उस का० काल ते० उस स० समय में स० श्रमण भ० भगवंत म० महावीर का अं० शिष्य पा० डेइत्ता एवं वयासी णट्ठेसि कदायि, विणट्ठसि कदाइ, भट्ठसि कदायि णट्ठविणट्टभट्ठेसि कदाइ, अणभवसि णाहिते ममाहिंतो सहमत्थि ॥ ९६ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वाणुभूईणामं अणगारे पगइभद्दए जात्र विणी धम्माणुरियाणुरागेणं एयमठ्ठे असद्दहमाणे उट्ठाए उट्ठेइ, क्रोधित हुवा और श्रमण भगवंत महावीर को अच्छे, बुरे आक्रोश के शब्दों से बोलने लगा, अभिमान (पूर्वक असमंजस शब्दों से नीचा गिराने लगा, तेरी साथ मेरा कुच्छ भी प्रयोजन नहीं है वैसे कर्कश वचनों से निर्भर्त्सना करने लगा, तीर्थंकरादि अलंकारों से हम को छोडकर वगैरह वचनों से प्राप्त अर्थ को छोडने में प्रवर्तने लगा, और बोला कि तू अपने आचारसे नष्ट भ्रष्ट हुवा है ऐसा मानता हूं, अथवा धर्म
सूत्र
भावार्थ
4 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
● प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
२०७०