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________________ । शब्दार्थ * अप्रच्छन्न को प० प्रछन्न म० मानता है अ० अलोक को लु० लोक ति० ऐसा अ० स्वतः को म० मान +अ० नहीं भगा हुवा प• भगा हुवा अ० स्वतः को म. माने ए. ऐसे ही तु० तुम भी गो० गोसाला अ अनन्य सं० होनेपर अ० अनन्य ति० ऐसा उ० उपालंभ करता है तं० इसलिये मा० मत ए ऐसा गोशाला नहीं अ० योग्य है गो० गोशाला स. सत्य ते तेरी छा० छाया णो० नहीं अ० अन्य ॥ ९५ ॥ त० तब से वह गो० गोशाला मं० मंखलीपुत्र स• श्रमण भ० भगवंत म. महावीर से ए० संते अण्णमिति उपलंभास, तं मा एवं गोसाला ! णारिहास गोसाला ! सच्चे व ते साच्छाया णो अण्णा॥९५॥तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्तेसमाणे आसुरुत्ते समणं भगवं महावीरं उच्चावयाहिं आउसणाहिं आउसइ, आउसइत्ता उच्चावयाहिं उद्धंसणाहिं उद्धंसेइ, उद्धंसइत्ता उच्चावयाहिं णिभंच्छ. णाहिं णिभंच्छेइ, णिभंच्छेइत्ता उच्चावयाहिं णिच्छोडणाहिं णिच्छोडेइ, णिच्छोभावार्थ माने, नहीं भगे को भगा हुवा माने. वैसे ही अहो गोशाला ! तू अन्य होते हुवे अन्य है ऐसा मानता है. इस से अहो गोशाला ! तुझे ऐसा करना योग्य नहीं है. अहो गोशाला ! यह मात्र तेरी आया है | परंतु अन्य नहीं है॥९५॥ जब श्री श्रमण भगवंतने ऐसा कहा तब वह गोशाला आसुरक्तं यावत्र पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र RP पत्ररहवा शतक 4200-40880
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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