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शब्दार्थ
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भगवंत म० महावीर गो० गोशाला मं० मखलीपुत्र को.ए. ऐसे व• बोले गो० गोशाला ज. जैसे ते."
रसि. होवे गा० ग्राम के लोक से प० पराभव पाया हुवा क. किसी स्थान ग० खड्डा द० खाइ दुर्ग, णि छपने का स्थान प० पर्वत वि. विषम अ० नहीं प्राप्त होते ए. एक म० बड़ा उ० उनके लो० तांतणे से स० सन के लो० तांतणे से क० कपास के तांतणे से ५० तणसूत्र से अ० स्वतः को ओ• ढककर वि० रहे से. वह अ० नही ढकाया हुवा अ० ढका अ० स्वतः को म० मानता है अ०
महावीरे गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी गोसाला ! से जहा णामए तेणए सिया गामेल्लएहिं परब्भवमाणे २ कत्थइ गत्तंवा दरिंवा दुग्गंवा णिणंवा पव्वयं वा विसमं वा अणस्सादेमाणे एगेणं महं उण्णालोमेणवा सणलोमेणवा कप्पासपम्हणया तणसूएणवा अत्ताणं आवरेत्ताणं चिद्वेजा ॥ सेणं अणावरिए आवरियमिति अप्पाणं मण्णइ, अपच्छण्णेय पच्छण्णमिति अप्पाणं मण्णइ, अणलुक्के लुक्कमिति अप्पाणं
मण्णइ, अपलायए पलायमिति अप्पाणं मण्णइ एवामेव तुम्हं पि गोसाला ! अणण्णे ऐमा बोले कि अहो गोशाला ! ग्रामलोक से पराभव पाया हुवा कोई चोर किसी स्थान स्वतःको छिपाने के लिये खड्डा, गुफा, दर्ग, पर्वत व विषम स्थान नहीं मीलने पर बड़ा उन का तार, सन का तार, कपास की तार अथवा तण के तार से स्वतः को लपेट कर ढका हुवा माने, अप्रच्छन्न को प्रच्छन्न
लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी.
भावार्थ