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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
43- पंचमाङ्ग विवाह पम्पत्ति ( भगवती ) सूत्र
( वा० वर्ष इ० यह स० सातवा प० शरीर परावर्त ५० किया ए० ऐसे आ० आयुष्मन् का० काश्यप ए एक ते० तेत्तीस व० वर्ष स० शत में स० सात प० शरीर प० परावर्त भ० होते हैं ति० ऐसा अ० कहा ॥ ९३ ॥ तं इसलिये सु० अच्छा आ० आयुष्मन् म० मुझे ऐ० ऐसा व० घोला सा० साधु गो० गोशाला मं० मेखलीपुत्र म० मेरा ध० धर्म का अं० शिष्य है गो० गौतम ॥ ९४ ॥ त० तब स० श्रमण ४०. उपरिहारं परिहरामि ॥ एवामेव आउसो ! कासवा ! एगेणं तेत्तीसेणं वाससएणं सतपपरिहारा परिहारिया भवतीति मक्खाया ॥ ९३ ॥ तं सुडुणं आउसो ! कासवा ! ममं एवं वयासी साधुणं आउसो ! कासवा ! ममं एवं बयासी गोसाले मालपुत्ते ममं धम्मंतेवासी गोयमा ! गोयमा ! ॥ ९४ ॥ तएवं समणे भगव
ध्रुव, निश्चल, धारन करने योग्य यावत् क्षुधा, तृषा, शीत, कृष्णादिक परिषह व उपसर्ग सहन करने वाला शरीर देखकर इस में प्रवेश किया. यहां पर सोलह वर्ष पर्यंत शरीर परावर्तन करूंगा. अहो आयुष्मन् । काश्यप ! इस तरह एक सो तेशीस वर्ष में सात शरीर परावर्तन होते हैं ॥ ९३ ॥ इस लिये अहो आयु}ष्मन् काश्यप ! ठीक है. अहो आयुष्मन् काश्यप ! अच्छा है कि तुम मुझे ऐसा कहते हो मखलीपुत्र गोशाला मेरा धर्म का शिष्य है ॥ ९४ ॥ तब श्री श्रमण भगवंत महावीर मंखली पुत्र गोशाला को
40 पनरहवा शतक 44+
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