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शब्दार्थ शरीर परावर्त से वह इ० यहां सा० श्रावस्ती ण नगरी में हा हालाहला कुं॰ कुंभकारिणी की कुल
कुंभकार शाला में अ० अर्जुन. गो. गौतमपुत्र का स शरीर वि० छोडकर गो• गोशाला मं० मखलीपुत्र का स० शरीर अ० समर्थ थि० स्थिर धु० धृव धा० धारन करने योग्य सी० शीत सहने वाला भी उ० ऊष्ण सहने वाला खु. क्षुधा सहने वाला वि. विविध दे० दशम० मशक प० परिसह उ० उपस सहने वाला थि०स्थिर सं० संघयण वाला ति० ऐसा क० करके अ० प्रवेश कर तं० उसे सो०. सोलह
पउपरिहारं परिहरामि, तत्थणं जेसे सत्तमे पउपरिहार, सेणं इहेव सावत्थीए णयरीए हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणसि अज्जुणस्स गोयमपुत्तस्स सरीरगं. विप्पजहामि, विप्पजहामित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगं अलं थिरं धुवं. स. धाराणिज सीयसहं उण्हसहं खुहासह विविहदसमसगपरिसहोवसग्गसहं थिरसं
घयणं तिकहु तं अणुप्पविसामि, अणुप्पविसामित्ता तं सोलसवासाई इमं सत्तम वर्ष पर्यंत रहा. वहां से छठा परिहार वैशाली नगरी के वाहिर कंडिकायन उद्यान में किया. वहां भारद्वाज का शरीर छोडकर गौतम पुत्र अर्जुन के शरीर में प्रवेश किया. वहां सतरह वर्ष पर्यंत रहा. और वहां से
सातवा शरीर परावर्तन यहां पर श्रावस्ती नगरी में हालाहला कुंभकारिणी की कुंभकारशाला में किया.शा 17वां गौतम पुत्र अर्जुन का शरीर छोडकर मखली पुत्र गोशाला का संपूर्ण इन्द्रियोंवाला, स्थिर संघयणी,
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसा