________________
शब्दार्थ १५० उत्पन्न हुवा से० वह अ. मैं का० काश्यप ॥ ९१ ॥ त० तब अ० मैं आ० आयुष्मन् का काश्यप को
कौमारावस्था में प० प्रवर्जा मे कु० कुमारावस्था में ब. ब्रह्मचर्य अ०नहीं विधा कर्ण सं० ब ५० प्राप्त की प० प्राप्त करके इ. यह स. सातवा पा० परावर्त प० परिहार प० हुआ तं. वह ज. जैसे ए. एणेक का म० मल्लराम का मं. मंडित का रो० रोहका भा० भारद्वाज का अ० अर्जुन गो० गौतम पुत्र गो गोशाला मं० मखलीपुत्र का ॥ १२ ॥ त० वहां जे. जो १० प्रथम ५० परावर्त प० परिहार
दारए पयाते॥ सेणं अहं कासवा!॥९॥तएणं अहं आउसो कासवा ! कोमारियाए पवजाए कोमारिएणं बंभचेरवासेणं अविद्धकण्णए चेव संखाणं पडिलभामि, संखाणं पडिलभामित्ता इमे सत्तमं पउट्ट परिहारं परिहरामि, तंजहा गणपोजाप, मलरामम्म, मंडियस्स, रोहस्स, भारदाइस्स अज्जुणस्स, सोयमपुत्तस्स, गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स
॥ ९२ ॥ तत्थणं जे से पढमे पउदृपरिहारे सेणं रायागहस्स णयरस्स बहिया मंडिभावार्थ
कुमार समान शरीर की प्रभावाला ऐसा बालक का जन्म हुआ. अहो काश्यप ! वही मैं हूं ॥ ११ ॥ अहो आयुष्मन् काश्या ! कुमार अवस्था में ही प्रवर्ध्या धारन करने से और कुमार अवस्था में ही ब्रह्मचर्य पालने से किसी के उपदेश विना स्वयमेव संख्यान ( बुद्धि) की प्राप्ति की, और इन सात शरीर में प्रवेश किया. १ एणेक का २ मल्लराम का ३ मंडित का ४ रोहा का ५ भारद्वाज का अर्जुन गौतम पुत्रका
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*