________________
शब्दार्थ ]
अ०
सु०
अशोकावतंसक: जा० यावत् प० प्रतिरूप से० वह त० वहां दे० देव में उ० or उत्पन्न होवे से० वह त० वहां द० दश सा० सागरोपम दि० दीव्य भो० भोग जा० यावत् च० छोड़ कर स० सातवा स० संज्ञी गर्भ जी० जीव में प० उत्पन्न होवे से० वह त० वहां ण नव मा० मास ६० बहुत प० प्रतिपूर्ण अ० साढ़े सात जा० यावत् वी० व्यतिक्रान्त सुकुमार भ० भद्र मि० मृदु कुं० दर्भ जैसे कुं० गुच्छावाले के केश म० आभरण विशेष क० कान के पि पृष्ठ भाग में दे० देवकुमार स० समान प० कांति वाला दा० पुत्र तंजहा असोगवडेंसए जाव पडिरूवा, से णं तत्थ देवे उववज्जइ, से णं तत्थ दस सागरोवमाइं दिव्वाई भोग जाव चइत्तासत्तमे सण्णिगन्भे जीवे पञ्चायति, सेणं तत्थ वहं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्टमाणं जाव वीकंताणं सुकुमाल - गभद्दलए मिउकुंडल कुंचिय के सए मट्ठगंडतलकण्णपीठए देवकुमार समप्प भए उत्तर दक्षिण चौडा वगैरह जैसे स्थान पद में कहा यावत् पांच अवतंसक कठे. अशोकावतंसक यावत् प्रतिरूप. वहां देवलोक में दश सागरोपमतक दीव्य भोगोपभोग यावत् छोडकर सातवा संज्ञी गर्भ में उत्पन्न होवे. वहां सवा नव मास पूर्ण हुवे पीछे सुकोमल, मृदु, भद्रमूर्तिवाला, कुर्वली पडे हुवे मस्तक के केशवाला, देव
सूत्र
भावार्थ
++ पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र 400
do
40 पनरहवा शतक
२०६९