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शब्दार्थ
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4.2 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 28
हि० नीचे का मा. मानुष्योत्तर सं० संजूह दे० देव में उ० उत्पन्न होवे से वह त० वहां दि० दीन्या भो० भोग जा. यावत् च. छोड कर छ. छठ स० संजीगर्भ में जी० जीव प. उत्तम होवे से० वह त• वहां से अ० अंतर रहित उ० नीकल कर बं० ब्रह्मलोक क. देव लोक १५० प्ररूपा पा० पूर्व पार पश्चिम में आ० लम्बा उ० उत्तर दा० दक्षिण विविस्तार वाला ज. जैसे ठा. स्थानपद में जा. यावत् प० पांच व. अवतंसक ५० प्ररूपा तं० तैसे णिगन्भे जीवे पञ्चायाति, से णं तओहिंतो अणंतरं उव्वटित्ता हिट्ठिले माणसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जति, से णं तत्थ दिव्वाइं, भोग जाव चइत्ता छट्टेणं सण्णिगब्भे जीवे पञ्चायाति, से णं तओहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता बंभलोगे णामं सेकप्पे पण्णत्ते,
पाईण पईणायए उदीण दाहिणविच्छिण्णे, जहा ठाणपदे जाव पंचवडेंसगा पण्णत्ता, वहां से अंतर रहित चवकर मध्य का मानुषोत्तर सजह देष में उत्पन्न होवे. वहां दीव्य भोगोपभोग यावत् छोडकर पांचवा संज्ञी गर्भ में उत्पन्न होवे, वहां से अंतर रहित चवकर नीचे का मानुपोचर संजुह देव में है देवतापने उत्पन्न होवे, वहां दीव्य भोगोपभोग भोगता हुवा यावत् छोडकर छठा सन्नी गर्भ में उत्पन्न होने वहां से अंतर रहित चवकर ब्रह्मलोक देवलोक में देवतापने उत्पन्न होवे. वह देवलोक पूर्व पश्चिम लम्बा,
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
भावार्थ