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शब्दार्थ * सं० वह तक वहां से जा. यावत् उ० नीकल कर उ० उपर के मा० मानुष्यात्तर सं० संजूह दे० देव में ,
उ० उत्पन्न होवे से वह त० वहां दि दीव्य भो० भोग च०छोडकर च० चतुर्थ स० संज्ञी गर्भ में जी०जीव
उत्पन्न होवे से० वह त० वहां से अ० अंतर रहित उ० चवकर म० मध्य के मा० मानुष्योत्तर सं० संजूह दे देव में उ० उत्पन्न होवे से वह तक वहां दि० दीव्य भो भोग जा. यावत् च० छोडकर पं० पांचवा स० संज्ञीगर्भ जी जीव में प० उत्पन्न होवे से वह तं० वहां से अ० अनंतर उ० नीकलकर
व्वाई जाव चइत्ता तच्चे सण्णिगन्भे जीवे पच्चायाति, से णं तओहिंतो जाव उव्व
हित्ता उवरिल्ले माणसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जइ, से णं तत्थदिव्वाई भोगं चइत्ता, है चउत्थे सण्णिगन्भे जीवे पञ्चायाति, से णं तओहिंतो अणंतरं उव्वटित्ता मज्झिल्ले
माणसुत्तरे संजूहे देवे उववजइ, से णं तत्थ दिब्वाइं भोग जाव चइत्ता पंचमे सभावार्थ भोग भोगता हुवा विचरे. वहां से आयुष्य भव व स्थिति क्षय से यावत् चवकर दूसरा संज्ञी गर्भ में ,
यावत् उत्पन्न होवे. वहां से चक्कर नीचे का मानससंजुह देवतापने उत्पन्न होवे, वहां दीव्य भोग भोगते ॐहुवे विचरे. वहां से अंतर रहित चवकर तीसरा संज्ञी भव में उत्पन्न होवे,और वहां से अंतर रहित चवकर उपर के
मानुषोत्तर संजुह देव में उत्पन्न होवे, वहां दीव्य भोगोपभोग छोडकर चौथा संज्ञी भव में उत्पन्न होवे.
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र १
पनरहवा शतक