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शब्दार्थ गाण. स्वच्छ भ. होवें से वह स० सरप्रमाण ए० इस स० सरप्रमाण से ति० तीन स० सर स० लक्ष ।
० से. वह म० महा कल्प च० चौरासी म. महाकल्प स० लक्ष से वह ए० एक म० महामानम ॥९॥३०७
अ० अनंत सं० संजुह जी. जीव च. छोडकर उ० उपर के मा० मनुष्य सं० संजूह दे० देव में उत्पन्न होने से वह तक वहां दि० दीच्य भो० भोगोपभोग मुं० भोगते हुवे वि० विचर कर ता. उस द० देवलोक से आ० आयुष्य क्षय से भ. भवक्षय से ठि• स्थिति क्षय से अ. अंतर रहित च चक्कर
प्पमाणेणं तिणि सरसयसाहस्साओ से महाकप्पे, चउरासीति महाकप्पसयसहस्साई से एगे महामाणसे ॥ ९० ॥ अणंताओ संजहाओ जीवे चयं चइत्ता उवरिले माणसे संजूहे देवे उववजिहिति, से णं तत्थ दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विह
रित्ता ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता उसे सर प्रमाण काल कहते हैं. ऐसे तीन लक्ष सरप्रमाण का एक महाकल्प होता है. चौरासी लक्ष महा कल्प का एक महा मानस होता है, इसे मानसोत्तर भी कहते हैं. यह चौरासी महा कल्प की व्याख्या कही ॥९॥ अब सात दीव्यादिक की प्ररूपणा करते हैं. अनंत जीवों की समुदायरूप काय से जीवों शरीर सजकर उपर बीच का व नीचे का यों जो तीन मानस के सद्भाव हैं उन में सोदो को छोडकर
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र Andr>
388पनरहवा शतक 8
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