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शब्दार्थ
सो गु० गुनपचास गं०गंगा स०सो भ० होती है अ कही ॥८९॥ ता०उन का दु० दो प्रकारका उ० उद्धार तं. जैसे सु. सूक्ष्म बो शरीर क० कलेवर बा० बादर बों० शरीर क० कलेवर त० वहां जे० जो से वह मु. सूक्ष्म बों० शरीर क० कलेवर से उस को उ० स्थाप कर तक वहां जे० जो से वह बा० बादर चों० शरीर के० कलेवर ता. उस का वा० सो वर्ष ग० गये ए. एक गं० गंगा की बा. रेती अ०३ नीकाल कर जा. जितने का. काल में से वह को कोठा खी० क्षीण णी० रज रहित णि. लेप रहित
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
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मक्खाया ॥ ८९ ॥ तासि दुविहे उद्वारे पण्णत्ते, तंजहा सुहुमबॉदिकलेवरे चेक, बादरवोदिकलेवरे चेव ॥ तत्थणं जे से सुहुमबोंदिकलेवरे से ठप्प, तत्थणं जे से बादरबोंदिकलेवरे तओणं वाससए गते एगमेगं गंगा बालुयं अवहाय जावइएणं
कालेणं से कोटे खीणे णीरए णिल्लेव गिट्ठिए भवइ. से तं सरप्पमाणे ॥ एएणं सरगंगा, यो सातों गंगा एकत्रित होने से एक लाख सात हजार छ सो गुनपञ्चाम गंगाओं होती हैं ॥ ८॥ अब उन गंगा नदियों में रही हुई बालु के दो भेद कहे हैं । सक्ष्म शरीर कण और २ बादर शरीर कण. उस में स सूक्ष्म शरीर कण की व्याख्या करना नहीं, और जो बादर शरीर कण हैं उनमें से प्रतिशतवर्ष एक २ कण नीकलते नितने काल में सक्त गंगा नदीयों क्षीणरजराहेत, निर्लेप व अवयव रहित होवे
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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