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शब्दार्थ 4 की म. मध्य बीच में णि नीकलकर जे० जहां को० कोष्टक चे० उद्यान जे. जहां स० श्रमण भ०१ :
भगवंत म. महावीर ते० वहां उ० जाकर स० श्रमण भ० भगवंत म. महावीर की अ० पास ठि. रह कर स० श्रमण भगवंत म. महावीर को ए. ऐसा ब० बोला सु० अच्छा आ० आयुष्मन का. काश्यप म. मुझे एक ऐसा व० बाला सा० साधु आ० आयुष्मन् का. काश्यप म० मुझे ए. ऐसा व. बोला गो० गोशाला मं० मखलीपुत्र म मेरा ध. धर्म का अं० शिष्य गो० गोशाला ॥८७ ॥ जे. जो गो० गोशाला मं० मंखली पुत्र म० मेरा ध० धर्म का अं० शिष्य से वह सु० शुष्क सु. शुष्काभिजात
उपागच्छइत्ता समणस्स भगवआ महावीरस्स अदरसामंतठिच्चा समणं भगव महावीरं एवं बयासी-सुटणं आउसो ! कासवा ! ममं एव वयासी साहूणं आउसो ! कासवा! ममं एवं वयासी गोसाले मखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी गोसाले २॥८७॥ जेणं
गोसाले मंखलिपुत्ते तव धम्मंतेवासी सेणं सुक्के मुक्काभिइए भवित्ता, कालमासे कालं भावार्थ भगवंत महावीर स्वामी की पास आया. वहां आकर श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास खडा रहकर
उन को ऐसा बोला कि अहो आयुष्मन् काष्यप ! ठीक है अहो आयुष्मन् काश्यप ! अच्छा है, तुमने मुझे है ऐसा कहा कि “मेखली पुत्र गोशाला मेरा धर्म का शिष्य है." ॥८७॥ जो मंखली पुत्र गोशाला तेरा
धर्ष का शिष्य था वह शुक्ल शुक्लाभिजात वनकर कालके अवसर में कालकर किसी देव लोक में देवता
4+ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
. प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.