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________________ शब्दार्थ + णो नहीं अ० अरिहंत भ० भगवंत को ५० परितापना पु० पुनः क करे ॥ ८४ ॥ तं० इसलिये ग०341 * जाओ तु० तुम आ० आनंद गो० गौतमादि स० श्रमण नि० निर्ग्रन्थों को ए० इस अ० बात ५० कहो मा० मत अ० आर्य तु. नुम के० कोई गो० गोशाला मं० मंखलीपुत्र को ध० धार्मिक प. निंदासे निंदो ध धार्मिक प० प्रतिकुल याद करके प० यादकरो ध० धार्मिक प० प्रत्युपकार से प. प्रत र कगे गो० गोशाला मंखलीपुत्रने स० श्रमण णि निग्रन्थों से मि. मिथ्यात्व वि. अंगीकार किया है ॥ ८ ॥ त० तब से वह आ० आनंद थे० स्थविर स० श्रमण भ० भगवंत म० महावीर से आणंदा ! जाव करेत्तए, णो चेवणं अरहंते भगवंते परियावणिय पुण करेजा॥८॥ है तं गच्छह णं तुमं अणंदा ! गोयमादीणं समणाणं णिग्गंथाणं एयमढें परिकहहि__ " माणं अजो ! तुभं केयि गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोइओ, धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेओ, धम्मियेणं पडोयारेणं पडोयारेओ, गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं समणेहिं णिग्गंथेहिं मिच्छं विप्पडिवण्णे” ॥८५॥ तएणं से आणंदे थेरे भावार्थ अरिहंत भगवंत को परितापना करने में समर्थ है ॥ ८४ ॥ इसलिये अहो आनंद ! तुम गौतमादि श्रमण निग्रंथ की पास जाओ, और कहो कि मंखलीपुत्र गोशालाने श्रमण निग्रंथ की साथ अनार्यपना अंगीकार या है. इस लिये इन का मत की चोयणा, निंदा व प्रतिकुल वचन मत करना ॥ ८५ ॥ जब स्था 438+ पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्ति ( भगवती ) सूत्र 4887 *8403403 पनरहवा शतक 888880
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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