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________________ २०४८ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी जा० जितना आ० आनंद अ० अनगार भ० भगवंत का त तपतेज ए. इस से अ० अनंत गुण वि. विशिष्टतर त० तपतेज थे० स्थविर भ. भगवंत का खं०क्षमा रखने वाले पुरु पुनः थे०स्थावर भ० भगवंत जा जितना आ० आनंद थे० स्थविर भ० भगवंत का त. तपतेज ए. इस से अ० अनंतगुन वि० विशिष्टतर अ० अरिहंत भ० भगवंत का खं० क्षमा रखने वाले पु० पुनः अ० अरिहंत भ. भगवंत ते. इसलिये प० समर्थ आ० आनंद गो० गोशाला मं० मंखलीपुत्र त० तपतेज से जा० यावत् क० करने को वि० विषय आ० आनंद जा. यावत् क० करने को स० समर्थ आ० आनंद जा० यावत् क० करने को इएणं आणंदा । थेराणं भगवंताणं तवतेए एत्तो अणंतगुणविसिट्टतराए चेव तवतेए अरहताणं भगवंताणं खंतिखमा पुण अरहंता भगवंतो, तं पभूणं आणंदा ! गोसाले मंखलिपुत्ते तवणं तेएणं जाव करेत्तए, विसएणं आणंदा ! जाव करेत्तए, समत्थेणं गोशाला का है, इस से अनंत गुण विशिष्टतर सामान्य साधुओं को होता है और जितना तपतेज सामान्य , साधुओं का है उस से अनंत गुण विशिष्टतर स्थविर भगवंत का तप तेज है, स्थविर भगवते का जितना तपतेज है उससे अनंतगुण विशिष्ठतर अरिहंत भगवंत का तपतेज है, क्योंकि वे सब शांति क्षमावाले होते हैं. इस से अहो आनंद ! खलीपुत्र गोशाला अपने तपतेज से भस्म करने को शंकित है, उन का इतना विषय है, और ऐसा करने को समर्थ भी है. परंतु अरिहंत भगवंत को भस्म करने में समर्थ नहीं है. मात्र *काशक राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावार्थ |
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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