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________________ शब्दार्थ 80 २०४७ 488 पंचमांग विवाहपण्णत्ति ( भगवती) सूत्र 880 प० शक्तिवंत आ० आनंद गो० गोशाला मं० मेखलीपुत्र त० तप से जा० यावत् क० करने का वि० विषय आ० आनंद गो० गोशाला जा. यावत् क० करने को म.समर्थ आ० आनंद गो० गोशाला जा यावत् का करने को णो० नहीं अ०अरिहंत भ. भगवंत को १०परितापना पु. पुनः क०करे जाजितना आ० आनंद गो० गोशाला में मंखलीपत्र का त० तपतेज ए. इस से अ० अनंत गुण मि. विशिष्ट त. तपतेज अ० अनगार भ. भगवंत का खं. क्षमा सहने वाले छु, तु; मभगवंत जाव करेत्तए, समत्थेणं आणंदा ! गोसाले जाव करेत्तए ॥णाचरण अरहत भगवंते परियावणियं पण करेजा ॥ जावइएणं आणंदा ! गोसालस्स मखलिपत्तस्स तवतेए एत्तो अणंतगुणविसिट्टयाए चेव तवतेए अणगाराणं भगवंतो खंतिखमा पुण अणगारा भगवंतो । जावइएणं आणंदा ! अणगाराणं भगवंताणं तवतेए एत्तो अणं तगुणविसिटुतराचेव तवतेए थेराणं भगवंताणं खंतिखमा पुण थेरा भगवंतो, जावंऐसा करने का विषय है ? अहो भगवन् ! क्या मंखलीपुत्र गोशाला तप से यावत् करने को समर्थ है ? अहो आनंद ! मंखलीपुत्र गोशाला तप से यावत् करने को शक्तिवंत है, मखलीपुत्र गो शाला का ऐसा विषय है और मंखली पुत्र यावत् करने को समर्थ है. परंतु अरिहंत भगवंत को भस्म करने में समर्थ नहीं है..मात्र अरिहंत भगवंत को परितापना कर सके. अहो भगवन् ! जितना तप . mmmmmmmmmmm पनरहवा शतक
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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