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________________ २०४६ शब्दाथकहना जा० यावत् नि• अपने ण नगर को सा० पहुंचाया तं० इसलिये ग. जा तु• तुम आ० आनंद - त० तेरे ध• धर्माचार्य ध० धर्मोपदेशक को जा. यावत् प० कहे ॥ ८३ ॥ तं० इस से ५० समर्थ • भगवन् गो० गोशाला मं० मंखलीपुत्र त तप ते. तेज से ए० एक आ० प्रहार कू• कूट आ० प्रहार भा० भस्म क० करने को वि० विषय भं० भगवन् गो० गोशाला मं० मखलीपुत्र का जा. यावत् क. करने को स० समर्थ भं. भगवन् गो गोशाला मं० मखलीपुत्र त० तप से जा. यावत क० करने को भाणियव्वं जाव णियगं णयरं साहिए तं गच्छहणं तुम आणंदा तव धम्मायरियस्स धम्मोवएसगस्स जाव परिकहहि ॥८३॥ तं पभूणं भंते ! गोसाले मंखलिपुत्ते तेवणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए,विसएणं भंते ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स। जाव करेत्तए; समत्थणं भंते ! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं जाव करेत्तए ? पभूणं । आणंदा ! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं जाव करेत्तए, विसएणं आणंदा ! गोसाले भावाथ नेक समय पहिले कितनेक छोटे बडे वणिक वगैरह सब कथा पूर्वोक्त जैसे कहना यावत् हित, सुख व कल्याण इच्छनेबाले को अपने नगर में पहुंचा दिया. इस से अहो आनंद ! तू तेरा धर्माचार्य धर्मोप*देशक की पास जा और यह सब वृतांत कहे ॥ ८३ ॥ अहो भगवन् ! मखलीपुत्र गोशाला अपने तप तेज से कूटाकार समान भस्म करने को क्या समर्थ है ? अहो भगवन् ! मंखलीपुत्र गोशाला को क्या अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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