SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2075
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०४५ शब्दार्थ ए. आव ता० तैसे आ० आनंद इ० यहां ए. एक म० बडी उ० उपमा नि० सुन त० तब अ० मैं से०१४ उस गो. गोशाला मं० मखलीपुत्र से ए. ऐसा वु० कहाया हुवा जे०जहां हा. हालाहला कुं• कुंभकारिणी की कुं• कुंभकार की आ० दुकान जे. जहां गो० गोशाला मं० मखलीपुत्र ते० वहां उ० गया त० तब से० उस गो गोशाला मं० मंखलीपुत्रने एक ऐसा व० कहा ए० ऐसे आ आनंद इ०आज से चि० लम्बाई काल से के० कितनेक उ० ऊंच नीच व० वणिक ए. ऐसे तं. वैसा स० सब नि० निरवशेष भा० . से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं हालाहलाए जाव पासित्ता, एवं वयासी एहि ताव आ णंदा ! इओ एग महं उवमियं णिसामेहि ॥ तएणं अहं से गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं है एवं वुत्तेसमाणे जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे जेणेव गोसाले मंखलि पुत्ते तेणेव उवागच्छामि ॥ तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते एवं वयासी एवं खलु आणंदा ! इओ चिराईयाए अडाए केइ उच्चावया वणिया एवं तंचेव सव्वं णिरवसेसं भावार्थ आप की आज्ञा से श्रावस्ती नगरी में ऊंच नीच यावत् परिभ्रमण करते हालाहला कुंभकारिणी के कुंभकार शाला की पास जाता था. वहां पर मंखलीपुत्र गोशालाने मुझे जाता हुवा देखा और बोलाकर कहा कि ७ अहो आनंद ! यहां आओ, मैं तुम को एक द्रष्टांत कहूं. मंखलीपुत्र गोशालाके ऐसा कहने पर मैं हालाहला कुंभकारिणी की दुकान में उस की पास गया. जब मुझे वह ऐसा बोलने लगा कि अहो आनंद ! कित पंचमांगविवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र 4882 986860 पनरहवा शतक 880888
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy