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२०४४
अम लक ऋषिजी
शब्दार्थम० मध्य बीच में णि नीकलकर जे०जहां को कोष्टक चे उद्यान जे० जहां स० श्रमण भगवंत प० महावीर
ते०वहां उ० आकर स० श्रमण भ० भगवंत म० महावीर को ति० तीनवार आ० आदान प० प्रदक्षिणाई करके वं वंदना कर ण. नमस्कार कर एक ऐसा व० बोले ए. ऐसे ख. निश्चयार्थ अ. मैं भं० भगवन छ० छठखमण के पा० पारणे में तु. आपकी अ० आज्ञा से सा० श्रावस्ती ण नगरी में उ. ऊंच नीच
जा. यावत् अ० फीरते हा. हालाहला कुं. कुंभकारिणी जा० यावत् वी० गया त० वहां से में गो० गोशाला मं० मंखलीपुत्र म० मुझे हा. हालाहला जा. यावत् पा० देखकर एक ऐसा व. बोला
सावत्थिं णयरिं मज्झं मझेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छइत्ता जेणेव कोट्ठए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेइत्ता वंदइ णमंसइ, णमंसइत्ता एवं वयासी एवं खलु अहं भंते ! छ?क्नमण पारणगंसि तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे सवत्थीए
णयरीए उच्चणीय जाव अडमाणे हालाहलाए कुंभकारीए जावं वीईवयामि तएणं भावार्थभीत हुवे और मखलीपुत्र गोशाला की पाम से हालाहला कुंभकार की दुकान में से नीकलकर शीघ्र
त्वरित श्रावस्ती नगरी की बीच में से नीकलकर कोष्टक उद्यान में श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास 1 आये. महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर ऐसा बोले कि अहो भगवन् ! मैं बेले के पारणे के दिन
*प्रकाशक राजावहदुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
8 अनुवादकबालब्रह
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