SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2067
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www |२०३७ शब्पार्थ , से० श्रेय दे० देवानप्रिय अ• हम को हु . इस वल्मीक की च० चौथी २० शिखा भि. भेदने को अ० . | अपिच इ. इस में उ. उत्तम म० महर्घ्य म. महाप्रयोजनवाला म० महायोग्य उ० प्रधान १० बजरत्न अ० प्राप्त करेंगे त उस समय ते. उन ५० वणिकों में ए. एक व० वणिक हि. हितकाकामी सु०30 सुख का कामी प० पथ्य का कामी अ० अनुकंपा वाला णि निश्रेय वाला हि हित सु० मुख नि.. निश्रेय के का० इच्छक ते. उन व० वणिकों को ए० ऐसा व०. बोला ए. ऐसा दे० देवानुप्रिय अ अपन को इ० इस व० वल्मीक की प० प्रथम व. शिवा भि० भेदने से उ० उदार उ० उदकरन्न खलु देवाणुप्पिया! अम्हं इमस्स वम्मीयस्स चउत्थंपि वप्पं भिंदितए अवियाई इत्थ उत्तमं महग्धं महत्थं महरिहं उरालं वइररयणं अस्सादेस्सामो ॥ तएणं तेसिं वणियाणं एगे वणिए हियकामए, सुहकामए पत्थकामए आणुकंपिए, णिस्सेयसिए हियसुहणिस्सेसकामए तं वणिए एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमस्प्तवम्मीयस्स पढमाए वप्पाए भिण्णाए उराले उदगरयणे जाव तच्चाए वप्पाए भावाथ वज्ररत्न की प्राप्ति होगी. उस समय उन वाणकों में से हित, सुख, पथ्य की इच्छावाला, अनुकंपावाला, मोक्ष का वांच्छक व हित, सुख व मोक्ष का वांच्छक एक वणिक उन अन्य सब बणिकों को बोला अहा देवानुप्रिय ! इस वल्मीक का प्रथम शिखर तोडते अपन को उदक रत्न की प्राप्ति हुई 428* दंजयांग विवाह परणत्ति ( भगवती) सूत्र पनरहवा शतक80880
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy