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________________ शब्दार्थ 428 पंचभाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 3288 ब० बोले ए. ऐसे दे. देवानुप्रिय अ० अपनने इ० इस ३० वल्मीक की १० प्रथम व० शिखा भि०भेदाने । से उ० श्रेष्ट उ० उदक रत्न अ० प्राप्तहुआ दो० दूसरी व शिखा भि० भेदाने से उ० श्रेष्ट सु० सुवर्ण रत्न अ० प्राप्तहुआ तं० इसलिये से श्रेय दे. देवानुप्रिय त तीसरी २० शिखा भिं० भेदने को अ० अपिचर २०३५ इ० इस में उ० उदार म० मणिरत्न अ० प्राप्त करेंग त तब ते. वेब० वणिक अ० परस्पर अंक पास ए. ऐसा १० सुना त० उस व. वल्मीक की त० तीसरी २० शिखा सिं० भेदी ते• इस से त० उस में वि.विमल नि. निर्मल णि भेद रहित नि० दोष रहित म० बहुत मूल्यवाला म. महा प्रयोजनवालाई वयासी- एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे इमस्स वम्मीयस्त पढमाए वप्पाए भिण्णाए उराले उदगरयणे अस्सादिए । दोच्चाए वप्पाए भिण्णाए उराले सुवण्णरयणे अस्सादिए । तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! तच्चंपि वप्पं भिंदित्तए अवियाइं इत्थं उरालं मणिरयणं अस्सादेस्सामो । तएणं ते वणिया अण्णभण्णस अंनियं एयमटुं पडिसुणेति पडिसुणेतित्ता, तस्स वम्मीयस तच्चंति बप्पं भिंदति ॥ तेणं तत्थ विमलं णिम्मलं उदक रत्न की प्राप्ति हुई, दूसरा शिखर भेदने से सुवर्ण रत्न की प्राप्ति हुई इस मे तीसरा शिखर भी भेदना चाहिये. जिस से उदार मणिरत्न की प्राप्ति होगी. उक्त वणिकोंने परस्पर ऐसा सुनकर इस का तीसरा शिखर भी तोडा कि जिस में से विमल, निर्मल, प्रसादिदोष रहित, महा मूल्य महा। 2040300 पन्नरहवा शतक 8 भावार्थ 88
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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