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शब्दार्थ
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१ अनुवादकबालब्रह्मचारी मुनि श्री अम लक ऋषिजी
व० शिखा भिं० भेदने को ए० इस से उ० श्रेष्ट सु. सुवर्णरत्न अ० प्राप्त करेंगे त०* तव ते वे ३० वणिक अ० परस्पर की अंक पास ए. इस बात को प. सुनी त. उस व० वल्मीक की व. शिखा भिं. तोडी. त० उस में अ० अच्छा ज० जातिवाला त० तपाहुआ म. बहुत अर्थवाला म.
त मूल्यवाला म० बडा योग्य उ० उदार सु० सुवर्ण रत्न अ० प्राप्त किया त० तब ते. वे व. वणिक ह. हृष्टतुष्ट भा० भाजन भ० भरकर प० वाहन भ० भरकर त० तीसरीवक्त भी अ० परस्पर ए. ऐसा
अस्सादिए, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हें इमस्स वम्मीयस्स दोच्चंपि वप्पं भिंदित्तए,
एत्थं उरालं सुवण्णरयणं अस्सादेस्सामो ॥ तएणं ते वणिया अण्णमण्णस्स अंतियं .. एयमद्रं पडिसुणेति २ त्ता तस्स वम्मीयस्स दोच्चंपि वप्पं भिंदति ॥ तत्थ अच्छं जच्चं ,
तवणिजं महत्थं महग्धं महरिहं उरालं सुवण्णरयणं अस्सादेति ॥ तएणं तेवणिया
हट्टतुट्ठा भायणाई भरेंति, भरोतत्ता पवहणाइ भरेंति २ त्ता तच्चंपि अण्णमण्णं एवं इसे भेदने से इस में से अपन सुवर्ण रत्न प्राप्त करेंगे. उक्त वणिकोंने परस्पर ऐसी बात सुनी और दूसरा शिखर भी भेदा. उस में से अच्छा, जातिवाला, तपाया हुवा, बहुत अर्थवाला, बहुत किंमतवाला उदार सुवर्ण रत्न की प्राप्ति हुइ. अब वे वणिक हृष्ट तुष्ट हुए यावत् भाजन भरलिये और साथ के वाहन भी भरलिये, फीर तीसरी वक्त भी परस्पर एसा बालन लग क इस वल्मीक के प्रथम शिखर में से अच्छा
* प्रकाशक राजावहदुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी *
भावार्थ
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