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________________ | २०३३ शब्दार्थ ज. जातिवाला त० हलका फा० स्फटिक वर्ण जैसा उ० उदार उ० उदकरत्न आ० प्राप्तकिया त०वे व०१ ० वणिक ह० हृष्ट तु• तुष्ट पा० पानी पि. पीया पि० पीकर वा० बैलों को प० पीलाकर भा. भाजन भ०१४ भरकर दो० दूसरी वक्त अ० अन्योन्य एक ऐसा व. बोले ए. ऐसे ख० खलु दे. देवानुप्रिय अ११। अपने से इ. इस व० वल्मिक की प. प्रथम व शिखा भि० भेदाड उ० श्रेष्ट उ० उदकरत्न अ हुवा तं० इसलिये से० श्रेय दे० देवानुप्रिय अ० अपन को ई० इस व० वल्मीक की दु० दुसरी मण्णस्स अंतियं एयमटुं पडिसुणेति २ त्ता तस्स वम्मीयस्स पढमं वप्पि भिंदेति. . तेणं तत्थ अच्छं पत्थं जच्चं तणुयं पालियवण्णाभं उरालं उदगरयणं आसादेति ॥ तएणं ते वणिया हतुवा पाणियं पिबति २ त्ता वाहणाई पजेतित्ता भायणाई भरेति, भरेतित्ता दोच्चंपि अण्णमण्णं एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हेहिं इमस्स वम्मीयस्स पढमाए वप्पाए भिण्णाए उराले उदगरयणे भावार्थ उनों ने भेदा. जिस से उस में से उन को अच्छा, पथ्य, हलका व स्फटिक वर्णवाला उदक रत्न की माप्ति हुइ. उप्स से वे वणिक हर्षित हुवे, पानी पीया और साथ बैल वगैरह पशुओं को भी पानी पिलाया. भाजनों में * पानी भर लिया. तत्पश्चात् वे परस्पर ऐसा बोलने लगे कि अहो देवानुप्रिय ! इस वल्मीक का प्रथम शिखर भेदने से उदार उदक रत्न की प्राप्ति हुई. अब इस का दूसरा शिखर भी भेदना चाहिये क्योंकि । पंचमांगविवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र <380%> 880%83800 पत्ररहवा शतक 8888880%
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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