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शब्दार्थ
4 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
यावत् स. चारों बाजु म मार्ग गवेषणा क० करने से इ० यह व० वनखंड आ० प्राप्त हुवा कि० कृष्ण कि० कृष्णावभास इ० इस व. वनखंड की ब० बहुत मध्य में इ• वह वळवल्मीक आ० प्राप्त हुवा इ. इस व. वल्मीक के च. चार व० शरीर अ० नीकले हुवे जा. यावत् प० प्रातरूप तं• इसलिये से. श्रेय दे० देवानुप्रिय अ० अपन इ० इस व० वल्मीक का प० प्रथम व. शरीर भि. भेदने को अ० निश्चय उ० उदार उ० जलरत्न अ० आस्वादेंगे त० तब ते. वे ३० वणिक अ०अन्यान्य की अ० पास एक यह अर्थ
सुनकर तक उस व बल्मीक की प. पहिली व शिखा भिं भेदी त० तहां अ० अच्छा ५० पथ अहं इमीसे अगामियाए जाब सव्वओ समंता मग्गण गवसणंकरमाणेहिं इमे । घणखंडे आसादिए, किण्हे किण्होभासे ॥ इमस्सणं वणखंडस्स बहुमज्झदेसभाए इमे वम्मीए आसादिए. इमस्सणं वम्मीयस्स चत्तारि वपुओ अब्भुग्गयाओ जाव पडिरूवाओ ॥ तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इम्मस्स वम्मीयस्स पढमं वप्पि भिंदित्तए अवियाइ उरालं उदगरयणं अस्सादिस्लामो ॥ तएणं ते वणिया अण्णयावत् बहुत दीर्घ अटवी में चारों तरफ पानी की गरेपणा करने कृष्ण, कृष्णावभास यावत् प्रतिरूप ऐसा यह वनखंड अपनने देखा, और इस की बीच में यह वल्मीक कोचार शरीर नीकले हवे हैं. इस का पहिला शिखर भेद नेसे अपन अच्छा पानी आस्वादेंगे, परस्पर ऐसा सुनकर उस वल्मीक का पहिला शिखर
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ