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________________ शब्दार्थ 4.3 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 89 ग. लीया हुवा उ• पानी अ० अनुक्रम से ५० भोगवते खी० संपूर्ण हुवा तं• इसलिये से० श्रेय दे० देवानुप्रिय अ० अपन इ० इस अ० ग्राम रहित जा. यावत् अ. अटवि में उ० पानी की स० चारोंबाजु म. मार्गगवेषणा क० करने को ति. ऐसा करके अ. अन्योन्य की अं० पास से ए० इस अर्थ को ५० सूनकर ती० उस अ० ग्राम रहित अ० अटवि में उ० पानी की स० चारों बाजु म० मार्ग गवेषणा क० करे ॥ ७३ ।। उ० पानी की स० चारों बाजु म० मार्ग गवेषणा क० करते ए. एक म० बडा व० वनखंड आ० प्राप्त हुवा कि० कृष्ण कि० कृष्णारभास जा० यावत् णि निकुरंव भूत पा० देखने योग्य पुरि जमाणे परिभुंजमाणे खीणे, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमीसे अगामियाए जाव अडवीए उदगस्स सव्वओ समंता मग्गणगवसणं करेत्तए तिकटु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमटुं पडिसुणेति २ त्ता, तीसे अगामियाए जाव अडवीए उदगरस सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करोति ॥ ७३ ॥ उदगस्स सव्वओ समंता मग्गण गवेसणं करेमाणे एगं महं वणखंडं आसाति, किण्हं किण्होभासं जाव थोडे विभाग में आते अपनी पास रहा हुवा पानी भोगते क्षीण हो गया है, इस से इस अटवी में चारों तरफ " पानी की गवेषणा करना चाहिये. ऐमा परस्पर सुनकर उस अटवि में चारो तरफ पानी की गवेषणा करने लगे. ॥ ७३ ॥ पानी की चारों तरफ गवेपणा करते हुए एक बडा वनखंड देखा, वहं कृष्ण कृष्णाभास .प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* , भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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