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शब्दार्थ कालवाली अ० अटवि में अप्रवेश किया किया॥७२॥त०तब त उन व वणिकों का ती० उस अग्राम रहित ।
छि• पंथरहित दी दीर्घकालवाली अ.अटवि का किं०थोडाभाग को अनहीं प्राप्तहोते पु०पहिले गलियाहवा 0 उ०पानी अ० अनुक्रम से य० भोगवते क्षी० संपूण हुवा ततव ते थे ५० वणिक खी० क्षीण उदकवाले त० } तृष्णा से ५० पराभवपाये अ० अन्योन्य स० बोलाकर ए० ऐसा ब० बोले दे० देवानप्रिय अ० अपन इ०१७ इस अ० ग्रामरहित जा० यावत् अ० अटवि का कि० किंचित् दे. देशको अ० प्राप्तहोते पु० पहिले
॥७२॥ तएणं तेसिं वणियाणं तीसे अगामियाए अणोहियाए छिण्णावायाए दीहमहाए अडवीए किंचिदेसं अणुप्पत्ताणं समाणं से पुव्वगहिए उदए अणुपुब्वेणं परिभुजमाणे २ खीणे ॥ तएणं से वणिया खीणोदगासमाणा तण्हाए परिब्भवमाणा अण्णमण्णे सहावेंति सतित्ता एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं इमीसे अगामियाए
जाव अडचीए किंचिदेसं अणुप्पत्ताणं समाणाणं से पुव्वगहिए उदए अणुपुव्वेणं भात पानी साथ लेकर प्राय नहीं होवे वैसी, पहाडों व वृक्षों से भरपूर, रस्ता मालूम पड़े नहीं वैसी बडी अटवि में पैठे. ॥ ७२ ॥ अब ऐसी ग्राम रहित, रस्ता विना की व बहुत लम्बी अटवी में थोडा गये पीछे।
वणिको की पास पहिले लिया हुवा पानी भोगते हुने क्षीण होगया.अब उन की पास पानी नहीं होने से तृषा से) 12 पीडित होने हुवे परस्पर बोलने लगे कि अहो देवानुप्रिय ! अपन इस ग्राम रहित यावत् महान अटबि के
+ पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
पन्नरहवा शतक १४
भाव